कैंची धाम आश्रम | नीम करोली बाबा धाम

neem karoli baba kainchi dham

कैंची धाम कहाँ स्थित है 

उत्तराखंड के नैनीताल जिले में कैंची धाम नाम से प्रसिद्ध मंदिर और उसके साथ लगा एक जाना माना आश्रम है| यह आश्रम बाबा नीम करोली बाबा को समर्पित है| कैंची धाम आश्रम नैनीताल से 23 किलोमीटर दूर नैनीताल-अल्मोड़ा रोड पर, भवाली टाउन के समीप स्थित है| समुन्द्र तल से इसकी ऊंचाई करीब 1400 मीटर है| 

मैदानी छेत्र से यहाँ पहुँचने के लिए उत्तराखंड के हल्द्वानी शहर से होकर गुज़ारना होता है, जो रेल, रोड से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है| इसके सबसे निकट हवाई अड्डा-पंतनगर हवाई अड्डा है|         

नीम करोली महाराज 

बाबा नीमकरोली महाराज का संन्यास पूर्व नाम पंडित लक्ष्मी नारायण शर्मा था और उनका जन्म सन 1900 के आसपास उत्तरप्रदेश के अकबरपुर गांव में हुआ| छोटी उम्र में ही गृह त्याग के पश्चात साधना कर उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया और अपना जीवन लोक कल्याण को समर्पित कर दिया| बाबा को सादगी पसंद थी इसलिए वह हमेशा दिखावे से दूर रहते थे|

बाबा नीम करोली आश्रम में लाखों श्रदालु बाबा जी का आशीर्वाद लेने आते हैं| बाबा जी (1900-11 सितम्बर 1973) का शरीर भले ही अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन उनकी आध्यात्मिक करुणा, दया और आशीर्वाद अब भी श्रद्धालुओं पर बरस रहा है| बाबा नीम करोली महाराज को कई लोग हनुमान जी का अवतार मानते हैं| 

नीम करोली महाराज का नाम कैसे पड़ा 

ब्रिटिश काल में एक बार एक टिकिट परिक्षण ने प्रथम श्रेणी में यात्रा कर रहे एक योगी को टिकट नहीं होने पर अपमानित कर अगले स्टेशन पर ट्रेन से उतार दिया लेकिन इसके बाद गार्ड के ग्रीन सिग्नल और ड्राइवर के बहुत कोशिश के बाद भी ट्रेन आगे नहीं बड़ पाई| तब किसी ने टिकट कलेक्टर को सुझाया की बाबा जी से माफ़ी मांग ली जाए तो ट्रेन शायद आगे बड़े|

इसके बाद रेलवे कर्मी को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने बाबा जी से माफ़ी मांग ससम्मान उन्हें सीट पर बैठाया| तभी ट्रेन आगे बड़ी| जिस जगह बाबा जी को उतारा गया था उस जगह का नाम नीब करोरी है जो इस घटना के बाद विख्यात हो गया| इसके बाद उनको नीब करोरी अथवा नीम करोली कहा जाने लगा| 

कैंची धाम और नीम करोली महाराज 

25 मई 1962 को बाबा जी ने पहली बार यहाँ की भूमि पर रखे और इस जगह से उनको गहरा लगाव हो गया| शिप्रा नाम की छोटी नदी के किनारे सन 1962 में उन्होनें अपने भक्तों के सहयोग से कैंची धाम की नीव रखी| यहाँ दो घुमावदार मोड़ है जो कैंची के आकार के हैं इसलिए इस जगह का नाम कैंची पड़ा| कैंची प्रकृति से घिरा एक शांत और रमणीय क़स्बा है| यहाँ आने पर व्यक्ति अपनी सभी समस्याओं का हल प्राप्त कर सकता है| 

नीम करोली महाराज का महात्मय

बाबा जी के कई किस्से हैं जो उनके भक्तों ने सुने, लिखे या अनुभव किये| बाबा कहीं भी प्रकट और अंतर्ध्यान हो सकते थे और उन्हें होने वाली घटनाओं का पूर्व से ज्ञान होता था| 

रिचर्ड अल्बर्ट रामदास ने बाबा नीब करोली महाराज के चमत्कारों पर "मिरेकल ऑफ़ लव" नामक एक किताब लिखी| इसी में 1943 की एक घटना का जिक्र है| बाबा जी के भक्तों में से एक बुजुर्ग दम्पति थे जो फतेहगढ़ में रहते थे| एक समय अचानक बाबा जी उनके घर पहुँच गए तो उन दम्पति को अपार ख़ुशी तो हुई पर उन्हें इस बात का भी दुःख था कि घर पर महाराज जी की सेवा करने के लिए कुछ भी नहीं है हालाँकि जो कुछ भी था उन्होनें नीबकरोली महाराज के समक्ष प्रस्तुत कर दिया| 

बाबा जी वह खाकर चारपाई पर कम्बल ओढ़कर लेट गए| बाबा जी रात भर करहाते रहे|  ऐसे में बुजुर्ग दम्पति परेशान हो गए कि पता नहीं बाबा जी को क्या हो गया| उन्हें ऐसा लगा रहा था जैसे कोई बाबा जी को मार रहा है| जैसे-तैसे करहाते-करहाते सुबह हो गयी| सुबह बाबा जी उठे और कम्बल को लपेटकर बुजुर्ग दम्पति को देते हुए कहा कि इसे गंगा में प्रवाहित करा देना| इसे खोलना नहीं अन्यथा फँस जाओगे| दोनों बुजुर्ग दम्पति ने महाराज की आज्ञा का पालन किया| जाते वक्त बाबा जी ने कहा चिंता मत करना महीने भर में आपका बेटा घर लौट आएगा| 

जब वह कम्बल लेकर नदी की ओर जा रहे थे तो उन्होनें महसूस किया कि इसमें लोहे का सामान रखा हुआ है| लेकिन बाबा जी ने यह आज्ञा दी थी कि इसे ना खोलें, तो उन्होनें वैसे ही उसे नदी में प्रवाहित कर दिया| उसके एक माह बाद बुजुर्ग दम्पति का बेटा बरमा फ्रंट से लौटा| वह ब्रिटिश सैनिक था और दूसरे विश्व युद्ध के दौरान वह फ्रंट पर तैनात था| उसे देख बुजुर्ग दम्पति बहुत खुश हुए| उसने घर आकर जो बताया वह हैरान करने वाला था| 

उसने बताया कि करीब महीने भर पहले वह दुश्मन फौज के साथ घिर गया था| रात भर गोलीबारी में उसके सारे साथी मारे गए| वह;अकेला बच गया| उसने बोला वह कैसे बच गया, उसे नहीं पता| उस गोलीबारी में उसे एक भी गोली नहीं लगी| रात भर वह जापानी दुश्मन सेना के बीच जिन्दा रहा| सुबह जब ब्रिटिश सेना की टुकड़ी आई, तब उसकी जान में जान आई| यह वही रात है, जब नीम करोली महाराज बुजुर्ग दम्पति के घर रुके थे| 

बाबा जी की कृपा से अनेकों भक्त कृतार्थ हुए| बाबा जी किसी भी लीला का प्रदर्शन करना पसंद नहीं करते थे| बाबा जी के भक्तों का दुःख हरने कि न जाने कितनी कहानियाँ हैं, जो आश्रम में मिलने वाली कई पुस्तकों से जानी जा सकती हैं| 

कैंची के अलावा बाबा जी द्वारा बनाये या उनसे जुड़े कई मंदिर हैं| बाबा जी ने अपनी समाधी के लिए वृन्दावन की पवित्र भूमि को चुना| 10 सितम्बर 1973 की मध्य रात्रि में, रामकृष्ण मिशन हॉस्पिटल, वृन्दावन  में उन्होनें देह त्याग दिया| 

15 जून को लगता है कैंची धाम मेला 

बाबा नीम करोली के निर्वाण के तीन वर्ष पश्चात 1976 में 15 जून को बाबा जी की मूर्ति स्थापना और अभिषेक कैंची मंदिर धाम में किया गया| यह दिन महाराज जी ने स्वयं तय किया था| उस दिन वेदों, मंत्रों के उच्चारण के साथ विधि पूर्वक बाबा जी की मूर्ति की स्थापना करी गई| तब से प्रति वर्ष 15 जून को बड़ा मेला लगता है जिसमें देश-विदेश से हज़ारों लाखों लोग शामिल होते हैं| 

स्टीव जॉब्स, जूलिया रोबर्ट, मार्क ज़ुकेरबर्ग जैसे पश्चिम देशों के लोग भी बाबा जी के भक्त रहे हैं| बाबा नीम करोली महाराज का जीवन, सांसारिक जीवन जी रहे लोगों के लिए एक आदर्श है कि कैसे सांसारिक बंधनों को निभाते हुए उच्च आध्यात्मिक और संत का जीवन जीया जा सकता है| उनका जीवन दूसरों की भलाई के लिए समर्पित रहा| 

कैंची धाम और आश्रम में रुकने के लिए पत्र लिखकर या ऑनलाइन ईमेल द्वारा आज्ञा लेनी पड़ती है|                            


      

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