सर्वे में Northing और Easting का क्या मतलब है - AVSahpaathi

सिविल इंजीनियर, एयरोनॉटिकल इंजिनियर आदि का Northing और Easting जैसे शब्दों से पाला पड़ता ही है|  कुछ इंजीनियर्स केवल कार्य तक ही सिमित इसका ज्ञान लेकर अपनी ड्यूटी करते हैं तो कई इसका सम्पूर्ण ज्ञान समेटना चाहते हैं| इस लेख में हम Northing और Easting Coordinate सिस्टम का एक सिविल इंजिनियर की जिज्ञासा अनुसार कुछ बातों को समझने का प्रयास करेंगे|       

रेफरन्स लाइन का महत्व  

इस पुरे संसार में ही नहीं पुरे ब्रह्माण्ड में कुछ भी समझने के लिए एक रेफरन्स का होना अति आवश्यक है| अगर आप चलती रेलगाड़ी में बैठे इंसान से ट्रेन की गति पूछोगे तो वह कुछ और बताएगा और धरती पर खड़ा व्यक्ति कुछ और| पृथ्वी सूरज की निरंतर परिक्रमा कर रही है, पर धरती पर इंसानों को इसका उल्टा दिखता है| दस व्यक्तियों को उत्तर की दिशा में बिना किसी उपकरण के केवल 15 मीटर एक रेखा खींचने को कहें तो सभी की रेखा उत्तर दिशा में तो जायेगी पर सबकी रेखा में कुछ अंतर जरूर होगा| 

इस तरह के सभी प्रश्नों में कभी कोई उलझन की स्थिति उत्पन्न न हो इसलिए इंसानों ने अपने आसपास एक रेफरन्स लाइन निर्धारित कर ली है| रेलगाड़ी में बैठा व्यक्ति अपने रेफरन्स से ट्रेन की गति बताएगा तो नीचे खड़ा व्यक्ति धरती के रिफरेन्स से| पृथ्वी के रेफरन्स से सूरज परिक्रमा कर रहा है तो अंतरिक्ष में सौर मंडल के रिफरेन्स से पृथ्वी सूरज के चक्कर लगा रही है| दस व्यक्ति उत्तर की दिशा में अपने वायुमंडल को ध्यान में रखकर रेखा खींचते हैं, पर सबका रेफरन्स एक जैसा होने के बावजूद, सटीक न होने के कारण अलग अलग रेखाएं खींचती हैं| 

इस तरह की किसी भी उलझन से बचने के लिए एक सटीक रिफरेन्स का होना बहुत जरुरी है| सिविल इंजिनीरिंग के निर्माण के प्रोजेक्ट्स में कुछ मिलीमीटर की दुरी भी बहुत मायने रखती है| टनल, लॉन्ग-स्पेन ब्रिज, अंडरग्राउंड हाइड्रो प्रोजेक्ट्स आदि कार्यों में तो गलती की कोई गुंजाइश नहीं रहती| तो इन कार्यों को साकार करने के लिए रेफरन्स लाइन क्या होती है| आइये जानते हैं-  

Latitude (अक्षांश) और Longitude (देशांतर) रेखाएं   

हमारी पृथ्वी गोलाकार है| और इस ग्रह की धरती पर किसी भी point को पहचान देने के लिए longitude और latitiude को परिभाषित किया गया है| Latitude, धरातल पर किसी भी स्थान की उत्तर-दक्षिण की स्थति को बताता है| Equator पर सभी स्थानों का अक्षांश(Latitiude) शुन्य होता है, और इसी प्रकार उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव का latitude क्रमशः  90 डिग्री उत्तर और 90 डिग्री दक्षिण होगा| Equator (भूमध्य रेखा) ग्लोब को उत्तरी गोलार्ध (Northern Hemisphere) और दक्षिणी गोलार्ध (Southern Hemisphere) में विभाजित करता है| पृथ्वी की सतह पर कोई भी बिंदु का latitiude वह कोण (angle) है, जो पृथ्वी के केंद्र से उस बिंदु के बीच की रेखा का भूमध्य रेखा तल के बीच होगा|          
 
Longitude (देशांतर रेखाएं) के लिए एक रिफरेन्स लाइन की आवश्यकता थी जहाँ से पृथ्वी के प्रत्येक भाग को कुछ पहचान दी जा सके और जो पुरे विश्व में समान हो| इसलिए हम कह सकते हैं पृथ्वी की सतह पर एक बिंदु का देशांतर (Longitude), एक सन्दर्भ मध्याहन (reference meridian) के पूर्व या पश्चिम का कोण है जो उस बिंदु से होकर गुजरता है| ग्रीनविच (Greenwich) में ब्रिटिश रॉयल ऑब्जर्वेटरी, लंदन, इंग्लैंड के meridian को अंतराष्ट्रीय प्रमुख मध्याहन (prime meridian) कहा गया है| इसका Latitude 51डिग्री28मिनट38सेकंड है| मतलब जो देशांतर रेखा ग्रीनविच की इस ऑब्जर्वेटरी से होकर उत्तर और दक्षिणी ध्रुव तक जायेगी उसे ही longitude लाइन्स का रिफरेन्स माना गया है|       



प्राइम मेरीडियन उचित पूर्वी और पश्चिमी गोलार्ध निर्धारित करता है| इसके ठीक उलट दूसरी तरफ का longitude 180 डिग्री पूर्व और 180 डिग्री पश्चिम दोनों है| हर एक meridian उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव में जाकर मिलती है| 

Prime Meridian को इंटरनेशनल दिनांक लाइन से भ्रमित नहीं करना चाहिए|     

Equator पर 1 सेकंड longitude की दुरी 30.92 मीटर है जबकि 30 डिग्री latitude पर इसका मान 26.76 मीटर, Greenwich (51डिग्री28मिनट38सेकंड) पर 19.22 मीटर और 60 डिग्री latitude पर घटकर 15.42 रह जाता है| 
                        
Longitude और Latitude दोनों एक साथ, पृथ्वी की सतह पर किसी भी स्थान की स्थिति को निर्दिष्ट करते है| लेकिन इसका माप डिग्री में होने के कारण, किसी स्थान के नक़्शे को इसके सन्दर्भ में खींचना भ्रम पैदा करता था|   

Map Projection (मानचित्र प्रक्षेपण)

मानचित्र पर किसी भी जगह की स्थिति को स्थापित करने के लिए, भू-निर्देशांक (geodetic coordinates) को समतल निर्देशांक (plane coordinates) में स्थापित किया जाता है| क्यूंकि हमारी पृथ्वी गोलाकार (spheroid) है, तो इस 3-D पृथ्वी का 2-D map projection इतना आसान कार्य नहीं था| क्यूंकि चाहे पृथ्वी का cylindrical प्रोजेक्शन हो, कोनिकल प्रोजेक्शन हो या फिर कोई और, सभी में या तो आकार (shape) बदल जाता है या तो छेत्रफल (area)| 

World Map देख अक्सर हमें यह भ्रम होता है कि Greenland (ग्रीनलैंड), कनाडा, रूस जैसे देशों का आकार यानि छेत्रफल बहुत बड़ा है| लेकिन क्या ऐसा सही में है? इसको समझने के लिए आपको map projection समझना होगा|  
  
वर्तमान उपयोग में आने वाले मानचित्र प्रक्षेपण में से एक है यूनिवर्सल ट्रांसवर्स मर्केटर coordinate सिस्टम जिसे UTM भी कहा जाता है| हम भारत में निर्माण कार्य में जो Northing, Easting का प्रयोग करते हैं उसका उत्तर हमें UTM द्वारा मानचित्र प्रक्षेपण (map projection) से ही मिलेगा|     
  

यूनिवर्सल ट्रांसवर्स मर्केटर coordinate सिस्टम (UTM) 

सीधे शब्दों में कहें तो UTM एक सिस्टम है जिससे पृथ्वी की सतह पर किसी भी स्थान को (coordinate) निर्देशांक प्रदान किये जाते हैं| Longitude, Latitude सिस्टम की तरह यह प्रणाली भी ऊंचाई (Elevation) को अनदेखा कर, पृथ्वी को एक बड़े ellipsoid की तरह मानती है| लेकिन पृथ्वी के सतह पर हर बिंदु के स्थान को डिग्री में (Longitude, latitude) ना बताकर, UTM सिस्टम ने पृथ्वी के 2-D मानचित्र प्रक्षेपण को 60 जोन में बाँट दिया है| इस UTM प्रणाली से प्रत्येक जोन के मानचित्र को एक plane surface माना जाता है और कुछ पैरामीटर से उसके x,y coordinates निकाले जाते हैं| एक spheroid (गोलाकार पृथ्वी) क्षेत्र को UTM क्षेत्र में ट्रांसवर्स मर्केटर से प्रक्षेपण करने के लिए कुछ मापदंड हैं जो स्थान, देश के हिसाब से अलग-अलग होते हैं| 

UTM सिस्टम से 180 डिग्री से 174 डिग्री पश्चिम को पहला जोन माना गया है और पूर्व की तरफ बढ़ते हुए हर 6 डिग्री में जोन बदल जाता है| इस प्रकार जोन-60, 174 डिग्री पूर्व से 180 डिग्री तक होगा| UTM सिस्टम Latitude(अक्षांश) 84 डिग्री उत्तर से 80 डिग्री दक्षिण तक के लिए ही है| उसके बाहर के लिए ध्रुवी क्षेत्र UTM प्रणाली द्वारा कवर नहीं किये जाते, और इसके लिए अलग UPS (Universal Polar Stereographic) प्रणाली का उपयोग किया जाता है|                  
          
         
पृथ्वी के गोल होने के कारण जोनों की संख्या (360 डिग्री / 06 डिग्री) 60 होती है| हालाँकि UTM system में केवल जोन को ही परिभाषित किया गया है पर कई बार किसी स्थान को military grid reference system में उपयोग होने वाले latitude band की मदद से चिन्हित किया जाता है| इसमें हर एक जोन को उत्तर और दक्षिण दिशा में भी 08 डिग्री latitude में बांटा गया है| इसकी शरुआत 80 डिग्री दक्षिण से होती है और 74 डिग्री दक्षिण तक के क्षेत्र को C से चिन्हित किया जाता है| फिर उत्तर की ओर जाते हुए प्रत्येक 06 डिग्री में उस जोन के अगले ग्रिड का नाम बदलकर D,E,F..... से X तक इसको विभाजित किया गया है| इसमें I और O को 1 और 0 से लेखन समानता होने के कारण छोड़ दिया गया है| दक्षिण से उत्तर की तरफ बढ़ते हुए, Equator पर इसे N से चिन्हित करते हैं और इसी प्रकार 72 डिग्री उत्तर से 84 डिग्री (12 डिग्री) उत्तर तक के क्षेत्र को X से denote करते हैं| 

अगर भारत के जम्मू-कश्मीर हिस्से में कोई निर्माण कार्य चल रहा हो तो UTM के हिसाब से इस क्षेत्र का जोन 43 होगा, और ग्रिड की बात करें तो यह 43S ग्रिड में होगा| यह तो हुई जोन को निर्धारित करने की बात, लेकिन जिस Northing और Easting को हम निर्माण में उपयोग करते हैं वह कहाँ से आती है? आइये जानते हैं| 

किसी भी स्थान की Northing और Easting कहाँ से आती है     

पृथ्वी पर किसी भी बिंदु के Northing और Easting का माप मीटर में किया जाता है| अगर हम मानलो जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में कोई निर्माण कार्य कर रहे हैं, तो कार्य शुरू होने से पहले Survey of India द्वारा निर्माण स्थल के पास कुछ Bench Mark स्थापित कर उसके coordinate, Northing और Easting में दिए जाते हैं| इन्हीं benchmark के रेफरन्स से हम अपना कार्य शुरू करते हैं| तो Survey of India कैसे निर्धारित करता है बेंचमार्क के coordinates| उदहारण के तौर पर हम जम्मू कश्मीर को लेकर समझते हैं जो 43 जोन में आता है| 

Northing (नोरथिंग)  
सबसे पहले देखा जाता है, कि हमारा निर्माण स्थल कौनसे जोन में आ रहा है, इस जोन के मध्य की देशांतर रेखा (Longitude) और भूमध्य रेखा (Equator) के intersection point को हम origin मान लेते हैं| यानि Equator पर इस इंटरसेक्शन बिंदु की northing शुन्य (0) होगी| उत्तर की तरफ बढ़ते हुए यह northing बढ़ती रहेगी और सबसे उत्तरी बिंदु पर (84० North) इसका माप 9 300 000 होगा| जम्मू कश्मीर के पास यह 3 660 000 के आसपास होगा|  

तो क्या दक्षिणी गोलार्ध में Northing नेगेटिव होगी? नहीं| Northing की वैल्यू कभी नेगेटिव ना हो इसलिए अगर Equator के दक्षिण में कोई निर्माण कार्य चल रहा हो, तो जोन के मध्य वाली देशांतर रेखा और भूमध्य रेखा के intersection point की Northing को 10 000 000 माना जाता है और दक्षिणी गोलार्ध में इसका माप कम होते हुए 80 डिग्री दक्षिण में  1 100 000 रह जाता है| 

Easting (ईस्टींग)                     
किसी भी जोन के मध्य वाली देशांतर रेखा (central meridian) के हर बिंदु की Easting 500 000 मानी जाती है| अगर कोई बिंदु central meridian से 50 किलोमीटर पश्चिम में होगा तो उसकी Easting 450 000 होगी| ठीक इसी प्रकार अगर इसी जोन का कोई बिंदु 50 किलोमीटर पूर्व की तरफ होगा तो उसकी Easting 550 000 होगी|  

दो जोन में पड़ने वाले निर्माण स्थल में Northing, Easting किस जोन की ली जाती है  

भारत में UTM सिस्टम के हिसाब से जोन 42,43,44,45,46 जोन आते हैं तो यह समस्या आना आम बात है कि जो बेंचमार्क के coordinates, Survey of India द्वारा प्रदान किये जाएंगे उनका सन्दर्भ किस जोन के central meridian से होगा| अगर कोई निर्माण स्थल दो जोन में पड़ रहा हो तो निर्माण में इस्तेमाल होने वाले Coordinates हम उस जोन के लेंगे जिसमें निर्माण का अधिक भाग पड़ रहा हो|            

              

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