Locomotive in Railway: रेलवे में इस्तेमाल होने वाले लोकोमोटिव मानव द्वारा बनाई गई सभी चीज़ों में से सबसे जीवित चीज के सबसे करीब मानी जाती है| एक लोकोमोटिव अपने फैंसी कोच, केबिन आदि से ज्यादा ट्रैक्शन पावर और क्षमता से पहचाना जाता है क्यूंकि जब एक विशेष लोकोमोटिव द्वारा किसी ट्रेन को चलाया जाता है यह उस लोकोमोटिव की विशेषता की ट्रेन बन जाती है| कोच और वैगन आदि केवल वे तत्व हैं जो लोकोमोटिव के आदेशों का पालन करते हैं| लोकोमोटिव ही ट्रेन के जीवित हिस्से की तरह है, या कहें तो यही एक ट्रेन है| आइए जानते हैं भारतीय रेलवे में लोकोमोटिव के बारे में और कैसा रहा स्टीम इंजन से लेकर आज के आधुनिक इलेक्ट्रिक इंजन तक भारतीय रेल इंजन का सफर:
लोकोमोटिव क्या होता है (Locomotive Means in Railway)
लोकोमोटिव शब्द लैटिन शब्द "लोको" (लोकस/Locus) और मध्यकालीन लैटिन शब्द "मोटिवस" (Motivus) से उत्पन्न हुआ है| लोटस का अर्थ है "एक जगह से" और मोटिवस का अर्थ है "गति का कारण"| लोकोमोटिव शब्द इन दोनों शब्दों का ही संक्षिप्त रूप है| इस शब्द का इस्तेमाल "लोकोमोटिव इंजन" के रूप में स्व-चालित और स्थिर भाप इंजन के बीच अंतर करने के लिए 1814 में पहली बार किया गया था| लोकोमोटिव को आम बोलचाल की भाषा में रेल इंजन भी कहा जाता है|
भारत में पहली बार रेलगाड़ी 1853 में चलाई गई थी| उस ट्रेन में लगा इंजन एक भाप इंजन (स्टीम-इंजन) था| भारत की इस पहली लोकोमोटिव में तीन स्टीम लोकोमोटिव का इस्तेमाल किया गया था जिसमें सिंध साहेब और सुल्तान स्टीम लोको शामिल थे| स्वतंत्रता के समय तक भारत में 99 प्रतिशत लोकोमोटिव भाप वाले ही थे| आजादी के बाद भी कोयला सस्ता और व्यापक रूप से उपलब्ध होने के कारण भारत ने स्टीम इंजन में निवेश जारी रखा| स्टीम इंजन के दोनों विकल्प डीजल और इलेक्ट्रिक इंजन उस समय काफी महंगे थे और साथ ही इसके लिए निवेश और तकनिकी ज्ञान की आवश्यकता भी थी| स्वतंत्रता के समय भारतीय रेलवे में लोकोमोटिव की भारी कमी होने और रेल इंजिनों में आत्मनिर्भर बनने के लिए 1949 में चित्तरंजन लोकोमोटिव वर्क्स की स्थापना करी गई, ताकि भारत अपने स्वयं के रेल इंजनों का उत्पादन कर सके|
CLW की बदौलत, भारतीय रेलवे बहुत तेजी से लोकोमोटिव में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ा| भारत ने आसान रास्ता अपनाते हुए पहले विदेशी निर्माताओं से टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के तहत लोकोमोटिव इम्पोर्ट किये और फिर उन्हें भारतीय परिचालन के लिए उपयुक्त बनाने के लिए उसमें बदलाव किए| सही लोकोमोटिव खोजने के लिए यह ट्रायल और एरर प्रक्रिया के कारण ही भारत में कई प्रकार की लोको क्लास हैं, जिनमें से कुछ का तो केवल एक संख्या में ही उत्पादन हुआ है|
भारत में सबसे सफल लोकोमोटिव WP और WG क्लास (ब्रॉड गेज स्टीम), WDM2, WDG3A, WDP4, WDG4 (ब्रॉड गेज डीज़ल), YDM4 (मीटर गेज डीज़ल), WCAM2 (ब्रॉड गेज ड्यूल इलेक्ट्रिक), WAM4, WAG5, WAP4, WAP5, WAP7, WDG9 (ब्रॉड गेज ए.सी. इलेक्ट्रिक) और WDS4B, WDS6 (ब्रॉड गेज डीज़ल शंटर) हैं| इसके साथ ही दुनिया में सबसे पुरानी काम करने वाली स्टीम लोकोमोटोव "फेयरी क्वीन" भी भारत की सफल लोकोमोटिव में से एक है|
भारत में स्टीम लोकोमोटिव
भाप इंजन भले ही तुलनात्मक रूप से शक्ति में कम हों, पर वो निश्चित रूप से देखने लायक थे| उनकी गड़गड़ाहट, सीटी और पहियों के चलने के ढंग से वह सही मायने में दमदार दिखते थे| आजादी के बाद नए लोकोमोटिव की तलाश में बाल्डविन, अमेरिका के नए 4-6-2 "पसिफ़िक" प्रकार के स्टीम लोकोमोटिव, भारत के लिए एकदम सही पाए गए| माल ढुलाई सेवाओं के लिए फ्रांस, ऑस्ट्रिया, जापान आदि से 2-8-2 WG क्लास को अपनाया गया था| यह दोनों क्लास स्टीम लोकोमोटिव की श्रेणी में अविश्वसनीय रूप से सफल रहे| समय की मांग के अनुसार स्टीम से डीजल और इलेक्ट्रिक श्रेणी में परिवर्तन के लिए वर्ष 1967 में आखिरी WP (नंबर 7754) और वर्ष 1970 में आखिरी WG (10480-अंतिम सितारा) का निर्माण किया गया| अगर आखिरी स्टीम लोकोमोटिव के निर्माण की बात की जाए तो आखिरी स्टीम लोकोमोटिव (YG 3152) मीटर गेज के लिए 1972 में किया गया था| 06 अक्टूबर 1995 को भारत में आधिकारिक रूप से ब्रॉड गेज ट्रैक पर स्टीम इंजन WL 15005 "शेर-ए-पंजाब" ने फ़िरोज़पुर से पंजाब के जालंधर तक अपनी अंतिम सेवा दी| इसके बाद फरवरी 2000 में गुजरात में आखिरी मीटर गेज स्टीम लोको की सेवाओं को भी बंद कर दिया गया|
भारत में डीज़ल लोकोमोटिव
स्वतंत्रता के समय भारत में केवल 18 डीज़ल लोकोमोटिव ही थे| 1950 के दशक में स्टीम लोकोमोटिव के विकल्प की जरुरत महसूस होने लगी| 1955 में भारत ने मीटर गेज के लिए ALCO, अमेरिका से अपना पहला डीजल रेल इंजन ख़रीदा| इसी कड़ी में 1961 में भारत में YDM4 लाया गया, जो मीटर गेज ट्रैक के लिए सफलतम रेल इंजन बना| ब्रॉड गेज ट्रैक के लिए भी 1957 में ALCO से WDM श्रेणी के रेल इंजन लाए गए| 1962 में 2600 हॉर्स पावर का WDM2 पहली बार भारत लाया गया जिसे बाद में चित्तरंजन लोकोमोटिव वर्क्स पर बनाया जाने लगा|
इस बीच कई डीजल लोकोमोटिव क्लास ने भारत में दस्तक दी लेकिन भारतीय रेलवे ब्रॉड गेज ट्रैक के लिए WDM2 से ही संतुष्ट नजर आ रही थी, जो विश्व स्तर पर अब अप्रचलित होने लगा था| लम्बे समय के बाद वर्ष 1994 में 3100 हॉर्स पावर का WDM3A, भारतीय रेलवे को मिला| WDP4 श्रृंखला और WDG4 के साथ इस बेहद सफल WDG/M3 श्रृंखला ने भारत में अधिक ट्रेनों और गति के साथ डीज़ल रेल इंजन का पुनर्जागरण किया|
भारत में इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव
आम धारणा के उलट, भारत में इलेक्ट्रिक ट्रैक्शन और इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव कोई नई तकनीक नहीं हैं| सही मायनों में देखें तो यह डीज़ल से भी पुराना है| बॉम्बे लोकल सर्किट और मुंबई-पुणे मार्ग को 1924 में अंग्रेजों द्वारा 1500 वाल्ट डी.सी इलेक्ट्रिफिकेशन किया गया था और इन मार्गों पर ट्रेनों को स्विश/ब्रिटश निर्मित WCP1/2/3/4 और WCG1 द्वारा संचालित किया जाता था| 1950 के दशक के अंत तक भारत द्वारा 25 kV 50 Hz AC का उपयोग करके प्रमुख मार्गों का विद्युतीकरण करने का निर्णय लिया गया| इस कदम ने DC रेल इंजिनों के भाग्य को सील कर दिया, और वे मुंबई के क्षेत्र पर ही सिमटने को मजबूर हो गए| यह मुंबई-क्षेत्र 2012 तक डी.सी संचालित रहा| आखिरी ख़रीदा गया डी.सी लोकोमोटिव WCG2 था|
भारत में एसी ट्रैक्शन के साथ विद्युतीकरण होने वाली पहली लाइन हावड़ा-मुग़ल सराय "ग्रैंड कॉर्ड" के बर्द्धमान-मुग़ल सराय सेक्शन और कलकत्ता उप नगरीय सिस्टम था| भारत में 1959 में पहली एसी लोकोमोटिव WAM-1s चली| बाद में WAM श्रेणी विकसित होते हुए WAM-4 पर आई, जो एक पूर्ण स्वदेशी और सबसे सफल इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव के रूप में उभरी| भारत में होते तेजी से रेल इलेक्ट्रिफिकेशन के लिए WAM-4 इलेक्ट्रिक लोको की WDM2 बन चुकी थी| 1967 में मीटर गेज के लिए जापान से आई इलेक्ट्रिक लोको YAM-1 को पेश किया गया था|
1975 में CLW में प्रसिद्ध WCAM-1 का जन्म हुआ जो एसी और डीसी दोनों करंट पर चल सकता था| इसके बाद साल 1980 में WAP सीरीज के आने से समर्पित यात्री सेवाओं वाले इंजिनों और लोकोमोटिव डिज़ाइन का ट्रेंड शुरू हुआ, जो आज भी यात्रियों को WAP1, WAP4, WAP5 और WAP7 के रूप में अपनी सेवाएं दे रहा है| ए.सी गुड्स इलेक्ट्रिक लोको की सीरीज WAG की बात करें तो शक्तिशाली WAG 12 जो एक 12000 हार्सपावर का रेल इंजन है, डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर पर अपनी सेवाएं दे रहा है|
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