Parakram Diwas 2023 Date | नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती 2023 | Subhash Chandra Bose Story in Hindi

Subhash Chandra Bose Jayanti: भारत के इतिहास के वह क्रन्तिकारी जिन्होनें देश की आज़ादी के लिए अंग्रेजों से लोहा लेने वाली 'आज़ाद हिन्द फौज' की कमान संभाली और जिनके 'जय हिन्द' के नारे की गूंज आज भी हर भारतीय के जुबान में है| वो हैं देश के महान स्वतंत्रता सेनानियों में शुमार "नेताजी सुभाषचंद्र बोस"| सुभाष चंद्र बोस की जयंती पिछले साल 2022 से पराक्रम दिवस (Parakram Diwas 2023) के रूप में मनाई जा रही है| पराक्रमी सुभाषचंद्र बोस, ने न सिर्फ देश के अंदर बल्कि देश के बाहर भी आजादी की लड़ाई लड़ी| राष्ट्रीय आंदोलन में नेताजी का योगदान कलम चलाने से लेकर 'आज़ाद हिन्द फौज' का नेतृत्व कर अंग्रेजों से लोहा लेने तक रहा| आइये जानते हैं पराक्रम दिवस (Parakram Diwas 2023) कब है और संक्षिप्त में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन की कुछ जानकारी (Subhash Chandra Bose Jayanti in Hindi)

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पराक्रम दिवस कब मनाते हैं (Parakram Diwas 2023) 

नेताजी ने हमेशा कहा कि देश में सबसे बड़ा अपराध अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना है| उन्होनें राष्ट्रवाद को मानवजाति के उच्चतम आदर्शों 'सत्यम शिवम् सुंदरम' से प्रेरित बताया| नेताजी ने देश को "स्वतंत्रता दी नहीं जाती ली जाती है", "तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा" जैसे जोशीले नारे भी दिए| साल 2022 से भारत सरकार द्वारा 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती (Subhash Chandra Bose Jayanti in Hindi) का दिन पराक्रम दिवस (Parakram Diwas 2023) के रूप में मनाने का फैसला लिया गया है|  

पराक्रम का अर्थ होता है शौर्य, सामर्थ्य, वीर होने के भाव (Parakram Diwas Meaning) और सुभाष चंद्र बोस जैसे साहसिक पुरुषार्थ वाले क्रन्तिकारी नेता सही मायनों में पराक्रमी थे|   

subhash chandra bose statue at india gate

पराक्रम दिवस का उद्देश्य  (Parakram Diwas 2023)

संस्कृति मंत्रालय के अनुसार नेताजी सुभाष चंद्र बोस शुरू से ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे और बचपन से ही देशभक्ति से ओतप्रोत थे|  उनकी जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने से से देश की जनता विशेषकर युवा विपरीत परिस्थितियों में नेताजी के जीवन से प्रेरणा लेंगे और देशभक्ति और साहस की भावना जगाएंगे| 


नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती 2023 विशेष 

गणतंत्र दिवस समारोह 2023 के हिस्से के रूप में और नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 126वीं जयंती (जिसे पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जाता है) को मनाने के लिए सशस्त्र बलों द्वारा संगीतमय प्रस्तुति तथा जनजातीय नृत्य महोत्सव 'आदि शौर्य - पर्व पराक्रम का' 23 एवं 24 जनवरी, 2023 को नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में आयोजित किया जाएगा| दो दिवसीय उत्सव के दौरान सशस्त्र बलों की क्षमता और भारत की जनजातीय संस्कृति की विशिष्ट संस्कृति व सुंदरता का प्रदर्शन किया जायेगा| प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी पराक्रम दिवस पर, 23 जनवरी को सुबह 11 बजे वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के 21 सबसे बड़े बेनाम द्वीपों का नामकरण 21 परमवीर चक्र विजेताओं के नाम पर करने हेतु आयोजित कार्यक्रम में भाग लेंगे| कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वीप पर बनने वाले नेताजी को समर्पित राष्ट्रीय स्मारक के मॉडल का भी अनावरण करेंगे| 

ज्ञात हो साल 2022 में पहली बार गणतंत्र दिवस समारोह 24 जनवरी के बजाय 23 जनवरी से शुरू हुआ था| यह कदम महान स्वतंत्रता सेनानी और दूरदर्शी नेता, नेताजी सुभाष चंद्र बोस को सम्मानित करने और श्रद्धांजलि देने के प्रयास में लिया गया था| 

केंद्र सरकार ने आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में भारत में व्यक्तियों और संगठनों द्वारा प्रदान किए गए अमूल्य योगदान और निस्वार्थ सेवा को पहचानने और सम्मानित करने के लिए वार्षिक सुभाष चंद्र बोस आपदा प्रबंधन पुरस्कार की भी स्थापना की थी, जो हर वर्ष 23 जनवरी को घोषित किये जाते हैं| वर्ष 2019, 2020, 2021 और 2022 के लिए 23 जनवरी 2022 को सुभाष चंद्र बोस आपदा प्रबंधन पुरस्कार दिए गए थे|    

पिछले वर्ष आज़ादी के अमृत महोत्सव के दौरान आने वाली महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती के उपलक्ष्य में भारत सरकार ने नई दिल्ली के इंडिया गेट के पास नेताजी सुभाष चंद्र बोस की ग्रेनाइट से बनी एक भव्य प्रतिमा स्थापित करने का भी निर्णय लिया था| यह प्रतिमा स्वतंत्रता संग्राम में नेताजी के योगदान के लिए एक उपयुक्त श्रद्धांजलि है, और उनके प्रति देश के ऋणी होने का प्रतीक है|  प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती, 23 जनवरी, 2022 को इंडिया गेट पर नेताजी की होलोग्राम प्रतिमा का अनावरण किया था, जिसके बाद 08 सितम्बर 2022 को उसी जगह नेताजी की 28 फीट लंबी, जेट ब्लैक ग्रेनाइट की मूर्ति इंडिया गेट के पास कैनोपी के नीचे रखी गई| 


नेताजी सुभाष चंद्र बोस की कहानी (Subhash Chandra Bose Story in Hindi)

"जय हिन्द" और "तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा" का नारा देने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक में हुआ| वे पिता जानकीनाथ बोस और माँ प्रभावती के नवीं संतान और पांचवे बेटे थे| जानकी नाथ बोस कटक शहर के मशहूर वकील थे| नेताजी ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई कटक में ही पूरी की| इसके बाद उनकी शिक्षा कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज में हुई| 

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नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अपने कॉलेज के शुरूआती दिनों में ही बंगाल में क्रांति की वह मशाल जलाई जिसने भारत की आज़ादी की लड़ाई को एक नई धार दी| बचपन में उन्होनें अपने शिक्षक के भारत विरोधी बयान पर आपत्ति जताई थी, और तभी सबको अंदाजा लग गया था कि वे गुलामी के आगे सर झुकाने वालों में से नहीं हैं| 

नेताजी सुभाष चंद्र बोस शुरू से ही स्वामी विवेकानंद से प्रेरित रहे, और समाज के प्रति उनकी सोच मानववादी और सुधारवादी बनती गई| 1919 में स्नातक करने के बाद उन्होनें भारतीय प्रशासनिक सेवा की तैयारी के लिए उनके माता-पिता ने उन्हें इंग्लैंड भेज दिया| अंग्रेजी शासन के जमाने में भारतियों के लिए सिविल सेवा में जाना बहुत कठिन होने के बावजूद सुभाष चंद्र बोस ने परीक्षा में चौथा स्थान हासिल किया| लेकिन उन्मुक्त विचारों के सुभाष और माँ के लाल का मन अंग्रेजों के इस नौकरी में कहाँ लगने वाला था| उन्होनें सिविल सर्विस की नौकरी से इस्तीफा दे दिया और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़ गए| 

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वे आईसीएस की नौकरी छोड़कर लंदन से भारत लौटने के बाद नेताजी की मुलाकात देशबंधु चितरंजन दास से हुई| उन दिनों चितरंजन दास ने फॉरवर्ड नाम से एक अंग्रेजी अखबार शुरू किया था और अंग्रेजों के जुल्मों के खिलाफ मुहीम छेड़ रखी थी| सुभाष चंद्र बोस से मिलने के बाद चितरंजन दास ने उन्होनें फॉरवर्ड अखबार का संपादक बना दिया| नेताजी उस अखबार में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ जोर-शोर से लिखकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ माहौल तैयार कर रहे थे| कलम से शुरू की गई इस मुहीम से नेताजी को साल 1921 में छह महीने की जेल भी हुई|  

चितरंजन दास के साथ स्वराज्य पार्टी के साथ काम करते हुए और उसके बाद भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जेल आने-जाने का सिलसिला जारी रहा| दिसंबर 1927 में कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव के बाद 1938 में वे कांग्रेस के अध्यक्ष बने| नेताजी ने साल 1928 में कोलकाता की सड़कों पर सेना की वर्दी में दो हज़ार भारतीय युवकों के साथ परेड कर ब्रिटिश खेमे को हिलाकर रख दिया था| 1938 में नेताजी को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया| नेताजी ने कांग्रेस को आजादी की तारीख तय करने को कहा| साथ ही तय तारीख तक आज़ादी न मिलने पर सुभाषचंद्र बोस अंग्रेजों के खिलाफ जोरदार आंदोलन छेड़ना चाहते थे लेकिन महात्मा गाँधी इसके लिए राजी नहीं हुए| आखिरकार सुभाषचंद्र बोस ने कांग्रेस से अलग होकर 1939 में फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की और अंग्रेजी साम्राज्य के खिलाफ नए सिरे से मोर्चा खोल दिया| 

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क्रन्तिकारी रास बिहारिबोस से प्रभावित होकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आज़ादी की लड़ाई के लिए विदेशी मदद लेने की ठान ली थी| कोलकाता में पुलिस की नज़रबंदी को चकमा देकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस काबुल के रस्ते हज़ारों किलोमीटर का सफर तय करके जर्मनी पहुंचे| जर्मनी में उनकी मुलाकात हिटलर से हुई, जिसने ब्रिटिश हुकूमत को कमजोर करने के लिए नेताजी को हर संभव मदद मुहैया कराने का वादा किया| नेताजी का यही विश्वास था कि भारत की आज़ादी तभी संभव है जब ब्रिटैन पर विश्व युद्ध के समय पर ही निशाना साधा जाए| इसी कड़ी में उन्होनें जर्मनी और इटली में कैद भारतीय युद्ध बंदियों को आज़ाद करवाकर मुक्ति सेना भी बनाई| 

साल 1943 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस जब जापान पहुंचे तब उन्हें कैप्टेन मोहन सिंह द्वारा स्थापित आज़ाद हिन्द फौज का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी दी गई| उनका चुनाव रास बिहारी बोस ने ही किया था| आज़ाद हिन्द फौज ने साल 1944 की फरवरी में ब्रिटिश सेना पर हमला कर दिया| सितम्बर 1944 में शहीदी दिवस के भाषण में ही नेताजी ने आज़ाद हिन्द सैनिकों को "तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा" कहा था| यह नेताजी सुभाष चंद्र बोस का ही असर था जिसने ब्रिटिश सेना में मौजूद भारतीय सैनिकों को आज़ादी के लिए विद्रोह करने पर मजबूर किया था|     

18 अगस्त 1945 को टोक्यो जाते समय ताइवान के पास नेताजी का एक हवाई दुर्घटना में निधन हो गया| बताया जाता है उनका शव नहीं मिल पाया| नेताजी की मौत के कारणों पर आज भी विवाद बना हुआ है| 

उनके ना होने के बाद भी उनकी कही हर बात भारतियों में देशप्रेम जगाती रही| आज़ाद हिन्द फौज के मुकदमों में रेड फोर्ट ट्रायल पहला मुक़दमा था जिसमें आज़ाद हिन्द फौज के सैन्य अधिकारियों के खिलाफ अंग्रेजी हुकूमत ने बगावत करने और हत्या करने का मुक़दमा चलाया था| यह मुक़दमा देश में कौमी एकता की मिसाल भी बना| 

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रेड फोर्ट ट्रायल आज़ाद हिन्द फौज के तीन सैन्य अधिकारियों के खिलाफ चलाये गए मुकदमे से जुड़ा है, जिसकी सुनवाई नवंबर 1945 से जनवरी 1946 तक दिल्ली के लाल किले में हुई और जिस वक्त इंडियन नेशनल आर्मी के कर्नल प्रेम सहगल, कर्नल गुरुबक्श सिंह ढिल्लन और मेजर जनरल शाहनवाज़ खान पर एक साथ मुक़दमा चल रहा होता था, तब बाहर सड़कों पर मौजूद देशभर के नौजवान "लाल किले से आई आवाज़, सहगल, ढिल्लन और शाहनवाज़" "हिन्दुस्तानियों के एक आवाज़, सहगल, ढिल्लन और शाहनवाज़" यही नारा लगाते थे|  

देश के लोगों के बीच देश भक्ति का माहौल पैदा हो गया था| लोग देश के लिए मर-मिटने को तैयार थे| अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ धरने-प्रदर्शन शुरू हो गए| लोगों की दुआओं और भारतीय एकता की बदौलत मुक़दमे का फैसला आज़ाद हिन्द फौज के हक़ में आया| ब्रिटिश साम्राज्य के अधिकारी हवा का रुख भांप गए और उन्हें समझ आ गया कि अगर आज़ाद हिन्द फौज के अधिकारियों को सजा दी गई, तो हिंदुस्तानी फौज में बगावत हो जायेगी| 

स्वतंत्र भारत की अमरता का जयघोष करने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस राष्ट्र प्रेम की दिव्य ज्योति जलाकर हमेशा के लिए अमर हो गए| 


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