Narasimha Jayanti 2023 Date | नरसिंह चौदस कब है | Narsingh Jayanti Vrat Katha

Narasimha Jayanti 2023: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान नरसिंह जगत के पालनहार भगवान विष्णु के चौथे अवतार हैं| भगवान नरसिंह, धर्म की रक्षा के लिए राक्षस हिरण्यकश्यप को मारने के लिए पृथ्वी पर अवतरित हुए थे| नरसिंह जयंती के दिन भगवान नरसिम्हा का जन्मोत्सव मनाया जाता है| आइये जानते हैं इस साल नरसिंह जयंती (Narsingh Jayanti 2023 Date) कब है और क्या है भगवान नरसिम्हा की कथा (Narsingh Jayanti Vrat Katha):

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नरसिंह जयंती 2023 कब है? (Narsingh Jayanti 2023 Date) 

हिन्दू पंचांग के अनुसार भगवान नरसिंह का अवतरण वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को हुआ था| इस साल वर्ष 2023 में यह दिन 04 मई 2023 को, गुरुवार के दिन पड़ रहा है| वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 03 मई 2023 को रात में 11 बजकर 59 मिनट पर होगी| और चतुर्दशी तिथि की समाप्ति अगले दिन 04 मई 2023 को रात में 11 बजकर 44 मिनट पर होगी|

Narasimha Jayanti 2021 Date: 25 मई 2021

Narasimha Jayanti 2022 Date: 14 मई 2022

Narasimha Jayanti 2022 Date: 21 मई 2024


भगवान विष्णु के चौथे अवतार: भगवान नरसिंह (Narasimha Jayanti)

भगवान नरसिंह भगवान विष्णु के चौथे अवतार थे| नरसिंह जयंती के दिन भगवान विष्णु राक्षस हिरण्यकश्यप को मारने के लिए नरसिंह के रूप में प्रकट हुए| उनका शरीर नर जैसा और मुख शेर जैसा था, इसीलिए उनका नाम नरसिंह पड़ा| 
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नरसिंह जयंती पर पूजा और व्रत (Narsingh Jayanti Vrat)

नरसिंह जयंती व्रत का पालन करने के नियम और दिशानिर्देश एकादशी उपवास के समान माने जाते हैं| नरसिंह जयंती के दिन भक्त मध्याह्न (हिंदू दोपहर की अवधि) के दौरान संकल्प लेते हैं और सूर्यास्त से पहले संध्याकाल के दौरान भगवान नरसिंह पूजन करते हैं| ऐसा माना जाता है कि भगवान नरसिंह सूर्यास्त के दौरान प्रकट हुए थे, जबकि चतुर्दशी प्रचलित थी| पारण, उपवास तोड़ना, अगले दिन उचित समय पर किया जाता है| 


पूजा करने और ब्राह्मण को दान देने के बाद अगले दिन उपवास तोड़ना चाहिए| चतुर्दशी तिथि समाप्त होने पर सूर्योदय के अगले दिन नरसिंह जयंती व्रत तोड़ा जाता है| यदि चतुर्दशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो जाती है तो जयंती की रस्में समाप्त करके सूर्योदय के बाद किसी भी समय उपवास तोड़ा जाता है| यदि चतुर्दशी बहुत देर से समाप्त हो जाती है अर्थात चतुर्दशी दिनमान के तीन चौथाई से अधिक रहती है तो दिनमान के पहले भाग में उपवास तोड़ा जा सकता है|

इस साल वैशाख शुक्ल चतुर्दशी का स्वाति नक्षत्र और कार्यदिवस शनिवार के संयोजन को नरसिंह जयंती व्रत का पालन करने के लिए अत्यधिक शुभ माना जाता है| 

नरसिंह जयंती पर भगवान नरसिम्हा की कहानी (Narsingh Jayanti Story)

प्राचीन समय में कश्यप नामक एक ऋषि और उनकी पत्नी दिति के दो पुत्र हुए जिनमें से एक का नाम हिरण्याक्ष और दूसरे का नाम हिरण्यकशिपु था| जब हिरण्याक्ष को भगवान विष्णु ने वराह रूप धरकर मार दिया तो उसका भाई हिरण्यकशिपु, हिरण्याक्ष के वध से बहुत दुखी हुआ| वह भगवान का घोर विरोधी बन गया था| 
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उसने अजेय बनने की भावना से कठोर तप किया और ब्रह्म देव को प्रसन्न कर उनसे हमेशा अमर रहने का वरदान माँगा| वरदान मांगते हुए उसने कहा-"हे ब्रह्म देव मुझे वरदान दीजिये कि मैं हमेशा अमर रहूं"| ब्रह्मदेव ने हिरण्यकश्यप को यह वरदान देने से मना कर दिया और कुछ दूसरा वरदान मांगने को कहा| इस पर हिरण्यकश्यप ने दूसरा वरदान मांगते हुए कहा-"हे ब्रह्मदेव मुझे वरदान दो कि मुझे संसार में रहने वाला कोई भी जीव-जंतु, राक्षस, देवी-देवता और मनुष्य मार ना पाएं| साथ ही मैं न दिन में मरुँ न ही रात के समय, न ही पृथ्वी पर न ही आकाश पर, न तो घर के अंदर और न ही घर के बाहर, न ही शस्त्र से मरुँ और न ही अस्त्र से|" 

हिरण्यकश्यप की तपस्या से ब्रह्मदेव खुश थे ही| इसलिए अमरता के एक वरदान के बदले उन्होनें यह सारे वरदान उसे दे दिए| वरदान पाकर हिरण्यकश्यप अजेय हो गया और उसने हर तरफ तबाही मचानी शुरू कर दी| उससे सिर्फ मनुष्य ही नहीं देवता भी परेशान रहने लगे| वह अपनी शक्ति से दुर्बलों को सताने लगा| हिरण्यकश्यप से बचने के लिए लोगों को उसकी पूजा करनी पड़ती थी| भगवान की जगह जो भी हिरण्यकश्यप की पूजा करता वह उसे छोड़ देता| और जो भी उसे भगवान मानने से मना करता वह उसे मरवा देता या फिर अन्य सजा देता| 
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उसके शासन से सब लोक और लोकपाल घबरा गए| जब उन्हें और कोई सहारा न मिला तब वे भगवान विष्णु से प्रार्थना करने लगे| देवताओं की स्तुति से प्रसन्न होकर नारायण ने हिरण्यकशिपु के वध का आश्वासन दिया| दैत्यराज का अत्याचार दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा था| यहां तक कि वह अपने ही पुत्र प्रहलाद को भगवान का नाम लेने के कारण तरह-तरह के कष्ट देने लगा| 

प्रह्लाद भगवान विष्णु के परम भक्त थे और समय-समय पर असुर बालकों को धर्म का उपदेश देते रहते थे| असुर बालकों को उपदेश देने की बात सुनकर हिरण्यकशिपु बहुत क्रोधित हुआ| उसने प्रह्लाद को दरबार में बुलाकर डांटते हुए कहा, ‘‘तू बड़ा उद्दंड हो गया है। तूने किस दम पर निडर हो मेरी आज्ञा के विरुद्ध काम किया है?’’ 


इस पर प्रह्लाद ने कहा, ‘‘पिताजी! ब्रह्मा से लेकर तिनके तक सब छोटे-बड़े, चर-अचर जीवों को भगवान ने अपने वश में कर रखा है| वही परमेश्वर ही अपनी शक्तियों के द्वारा इस विश्व की रचना, रक्षा और संहार करते हैं| आप भी अपना यह असुर भाव छोड़ दीजिए| अपने मन को सबके प्रति उदार बनाइए| प्रह्लाद की बात सुनकर हिरण्यकशिपु का शरीर क्रोध के मारे थर-थर कांपने लगा। उसने प्रह्लाद जी से कहा, ‘‘अरे मंदबुद्धि! तेरे बहकने की अब हद हो गई है। यदि तेरा भगवान हर जगह है तो बता इस खंभे में क्यों नहीं दिखता?’’ 
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यह कह कर क्रोध से तमतमाया हुआ वह स्वयं तलवार लेकर सिंहासन से कूद पड़ा| उसने बड़े जोर से उस खम्भे को एक घूंसा मारा| उसी समय उस खम्भे के भीतर से नरसिंह भगवान प्रकट हुए| उनका आधा शरीर सिंह का और आधा मनुष्य के रूप में था| क्षण मात्र में ही लीलाधर नरसिंह भगवान ने हिरण्यकश्यप की जीवन लीला समाप्त कर दी| नरसिंह भगवान ने हिरण्यकश्यप को दरवाजे के चौखट पर अपनी गोद पर बिठाकर अपने नाखूनों से मार कर अपने प्रिय भक्त प्रहलाद की रक्षा की|  

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