कोकिला व्रत कब है 2023 | Kokila Vrat 2023 Date Vrat Katha

Kokila Vrat 2023: कोकिला व्रत को आषाढ़ पूर्णिमा के दिन किया जाता है| कई स्थानों पर कोकिला व्रत सम्पूर्ण सावन माह में आने वाले व्रतों का आरम्भ होता है और इसे आषाढ़ पूर्णिमा से श्रावण पूर्णिमा तक रखते हैं| कोकिला नाम भारतीय पक्षी कोयल को संदर्भित करता है और देवी सती के साथ जुड़ा हुआ है| इस व्रत में देवी की कोयल स्वरुप में पूजा की जाती है| आइये जानते हैं इस वर्ष कोकिला व्रत कब होगा (Kokila Vrat 2023 Date), क्या है कोकिला व्रत कथा और पूजा विधि:
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कोकिला व्रत कब है (Kokila Vrat 2023 Date)

कोकिला व्रत में देवी पार्वती की कोयल स्वरुप में पूजा की जाती है| विशेष रूप से स्त्रियों द्वारा किए जाने वाले इस व्रत से पुत्र, संपत्ति और सौभाग्य की प्राप्ति होती है| वहीँ कुवांरी कन्याओं द्वारा यह व्रत करने से सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है| इस वर्ष आषाढ़ पूर्णिमा 03 जुलाई 2023 को है| इसी दिन कोकिला व्रत रखा जाएगा| पूर्णिमा तिथि 02 जुलाई 2023 को रात्रि 08 बजकर 21 मिनट पर शुरू होगी और अगली तारीख 03 जुलाई 2023 को शाम 05 बजकर 08 मिनट पर इसकी समाप्ति होगी| 

कोकिला व्रत कथा (Kokila Vrat Katha)

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, प्राचीन समय में राजा दक्ष के घर शक्तिस्वरूपा माता सती ने जन्म लिया| राजा दक्ष ने खूब लाड़-प्यार से देवी सती का पालन-पोषण किया लेकिन जब विवाह का समय आया तो राजा दक्ष के ना चाहने के बावजूद माता सती ने भगवान शिव से शादी कर ली| बाद में एक बार दक्ष प्रजापति ने बहुत बड़ा यज्ञ किया| उस यज्ञ में समस्त देवताओं को आमंत्रित किया, परन्तु अपने दामाद भगवान शंकर को आमंत्रित नहीं किया| यह बात, जब उनकी पुत्री सती को पता चली तो उन्होनें भगवान शंकर से मायके जाने का आग्रह किया| भगवान शंकर ने सती को बहुत समझाया कि बिना निमंत्रण के कहीं नहीं जाना चाहिए, चाहे वह मायका ही क्यों न हो| पर देवी सती ने एक ना मानी और मायके चली गई| 
kokila vrat katha

मायके में सती जी का बहुत अपमान और अनादर हुआ, जिसको सहन न कर पाने के कारण वह यज्ञ अग्नि में कूद कर भस्म हो गई| भगवान शिव को जब माता सती के सतीत्व का पता चला तो उन्होंने माता सती को श्राप दिया कि आपने मेरी इच्छाओं के विरुद्ध जाकर आहुति दी, अतः आपको भी वियोग में रहना पड़ेगा|  उस समय भगवान शिव ने उन्हें दस हजार साल तक कोकिला (कोयल) बनकर वन में भटकने का श्राप दिया|

इस श्राप के प्रभाव से ही माता सती कोयल बनकर 10 हजार साल तक वन में भगवान शिव की आराधना की| इसके बाद उनका जन्म पर्वतराज हिमालय के घर हुआ| और उन्होंने तपस्या कर भगवान शिव को अपना जीवनसाथी बनाया| इसी वजह से इस व्रत की काफी महिमा है| 
kokila vrat puja vidhi

कोकिला व्रत पूजा विधि (Kokila Vrat Puja Vidhi)

कोकिला व्रत के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर और स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए| उसके बाद पीपल वृक्ष या आंवले के वृक्ष के नीचे भगवान शिवजी तथा माता पार्वती की प्रतिमा को स्थापित कर उनकी पूजा करनी चाहिए| यह भी माना जाता है कि कोकिला व्रत के दौरान मिट्टी से बनी कोयल की मूर्ति की पूजा करने से प्यार और देखभाल करने वाले पति को पाने में मदद मिलती है| भगवान की पूजा जल, पुष्प, बेलपत्र, धूप. दीप आदि से करनी चाहिए| इस दिन निराहार व्रत करना चाहिए| सूर्यास्त के पश्चात पुनः आरती अर्चना करने के पश्चात फलाहार करना चाहिए| माना जाता है कि स्त्रियों द्वारा किए जाने वाले इस व्रत से पुत्र, संपत्ति और सौभाग्य की प्राप्ति होती है| वहीँ कुवांरी कन्याओं द्वारा यह व्रत करने से सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है| 


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