शहीद मदन लाल ढींगरा: भारत को आजाद कराने की पहली चिंगारी 1857 में भड़की| ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री रेजिमेंट में एक सिपाही, मंगल पांडेय ने ब्रिटिश शासन के सामने झुकने से इनकार कर दिया था जिसके बाद उन्होंने शहादत प्राप्त की| उनके ठीक एक साल बाद रानी लक्ष्मीबाई ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ी| भारत माता के ऐसे ही एक वीर सपूत थे मदनलाल ढींगरा, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता की चिंगारी को प्रचंड आग में बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई| इनके बलिदान के बारे में शहीद भगत सिंह ने 1928 में कीर्ति में भी लिखा था| मदन लाल ढींगरा एक भारतीय क्रांतिकारी, स्वतंत्रता समर्थक कार्यकर्ता थे| इंग्लैंड में अध्ययन करते समय, उन्होंने 26 वर्ष की आयु में एक ब्रिटिश अधिकारी विलियम हट कर्जन वाइली की हत्या कर दी| आइये जानते हैं शहीद मदनलाल ढींगरा का जीवन परिचय:
मदनलाल ढींगरा का जन्म सितम्बर 1883 में अमृतसर, पंजाब प्रान्त, ब्रिटिश भारत में एक शिक्षित और संपन्न पंजाबी परिवार में हुआ था| उनके पिता दित्तामल पेशे से डॉक्टर थे| उनकी माताजी अत्यन्त धार्मिक एवं भारतीय संस्कारों से परिपूर्ण महिला थीं| मदनलाल ढींगरा सात बच्चों में सबसे छोटे थे| ब्रिटिश वफादारों के परिवार से होने के कारण उनके परिवार में देशभक्ति और राष्ट्रवाद की कोई परंपरा नहीं थी| लेकिन मदनलाल ढींगरा अलग थे| सन 1900 में ढींगरा सरकारी कॉलेज विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए लाहौर गए| मदनलाल को भारतीय स्वतन्त्रता सम्बन्धी क्रान्ति के आरोप में कालेज से निकाल दिया गया तो परिवार ने मदनलाल से नाता तोड़ लिया|
मदनलाल ढींगरा "होम रूल" के उद्देश्य से किये गए राष्ट्रवादी आंदोलन से काफी प्रभावित थे| बड़े भाई की सलाह पर वर्ष 1906 में उच्च शिक्षा प्राप्त करने वे इंग्लैण्ड चले गये| यह बात 1905 में श्यामजी कृष्णवर्मा के इंडिया हाउस की नींव पड़ने के एक साल बाद की है| लंदन में वे प्रसिद्ध भारतीय स्वतंत्रता और राजनीतिक कार्यकर्त्ता विनायक दामोदर सावरकर और श्यामजी कृष्णवर्मा के संपर्क में आए| वे उनकी गहन देशभक्ति से बहुत प्रभावित हुए| मदनलान ढींगरा इंडिया हाउस में रहते थे जो उन दिनों भारतीय छात्रों की राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र था|
खुदीराम बोस, कन्हाईलाल दत्त, सतिंदर पाल और काशीराम जैसे क्रांतिकारियों को मौत की सजा की घोषणा से इंडिया हाउस के क्रांतिकारी छात्र नाराज थे| कई इतिहासकारों का मानना है कि इन घटनाओं ने सावरकर और ढींगरा को खोए हुए क्रांतिकारियों की मौत का बदला लेने के लिए मजबूर किया| यह माना जाता है, यह सावरकर ही थे जिन्होंने ढींगरा को 'अभिनव भारत' नामक क्रांतिकारी संगठन का सदस्य बनाया और उन्हें हथियारों का इस्तेमाल करने के लिए प्रशिक्षित किया|
01 जुलाई 1909 की शाम को 'इंडियन नेशनल एसोसिएशन' के वार्षिक समारोह में भाग लेने के लिए बड़ी संख्या में भारतीय और अंग्रेज एकत्रित हुए| भारत के राज्य सचिव के राजनितिक सहयोगी विलियम कर्ज़न इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे| जब कर्ज़न अपनी पत्नी के साथ हॉल से निकल रहे थे, ढींगरा ने उसपर पांच गोलियां चलाई, जिनमें से चार निशाने पर लगी और छठी गोली कर्ज़न को बचाने की कोशिश कर रहे एक पारसी डॉक्टर को लगी| कर्ज़न को मारने के बाद ढींगरा ने खुद को गोली मारने की कोशिश की लेकिन वह असफल रहे, क्यूंकि उनकी बन्दुक में कोई गोली नहीं बची थी| ढींगरा को गिरफ़्तार कर लिया गया|
23 जुलाई 1909 को ओल्ड बेली कोर्ट में ढींगरा के मुक़दमे की सुनवाई हुई| मदन लाल ढींगरा ने अदालत में खुले शब्दों में कहा कि "मुझे गर्व है कि मैं अपना जीवन समर्पित कर रहा हूं|" अदालत ने उन्हें मौत की सजा का आदेश दिया और 17 अगस्त 1909 को मदनलाल ढींगरा को लंदन के पेंटनविले जेल में फांसी दी गई| मदनलाल ढींगरा जैसे वीर मरकर भी सदा के लिए अमर हो गए|
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