राजुला और मालूशाही की प्रेम कथा | Rajula and Malushahi Story in Hindi

Rajula and Malushahi Story in Hindi: प्रेम को लेकर सभी की परिभाषाएं अलग अलग होती हैं और पर हर परिभाषा अपने आप में अद्भुत होती है|  इसलिए हमारे सामने राधा-कृष्ण से लेकर हीर-राँझा और सोनी-महिवाल की लोकप्रिय प्रेम कहानियां हैं| ऐसी ही एक अमर कहानी उत्तराखंड से है जिसके कई रूप सुनने को मिलते हैं| यह प्रेम कहानी है राजुला और मालूशाही की| आइये जानते हैं राजुला और मालूशाही की प्रेम कहानी: 

rajula malushahi ki kahani

उन दिनों कुमाऊँ के पहले राजवंश कत्‍यूरों की राजधानी बैराठ, जिसका वर्तमान नाम चौखुटिया है, में हुआ करती थी| उस समय बैराठ में राजा दुलाशाह का शासन था| उनकी कोई संतान नहीं थी| संतान प्राप्ति के लिए वे कई जगह मन्नतें मांगने जाया करते थे| इसी उम्मीद के साथ वे एक बार बाघनाथ, बागेश्वर पहुंचे| यहाँ उनकी मुलाकात भोट के व्‍यापारी दंपत्ति सुनपति शौका और गांगुली से हुई| वे भी संतान की मनोकामना के लिए यहाँ आये हुए थे| दोनों ने एक दूसरे से वादा किया कि यदि उनकी संतानें लड़का-लड़की हुईं तो उनका आपस में विवाह कर देंगे|

बागनाथ की कृपा से बैराठ के राजा को पुत्र प्राप्ति हुई जिसका नाम मालूशाही रखा गया| सुनपत शौका के घर में पैदा हुई लड़की का नाम राजुला रखा गया| पुत्रजन्म के बाद राजा दुलाशाह को ज्योतिषी ने बताया कि ‘राजा! तेरा पुत्र बहुरंगी है, लेकिन इसकी अल्प मृत्यु का योग है. इसका निवारण जन्म के पांचवे दिन इसका ब्याह किसी नौरंगी कन्या से करने पर ही होगा.’| फ़ौरन राजपुरोहित को शौका देश रवाना कर दिया गया, कि वह राजुला से ब्याह करने की बात तय कर आये| राजपुरोहित के प्रस्ताव से सुनपति सहमत हो गये और फ़ौरन नवजात पुत्री राजुला का प्रतीकात्मक विवाह मालूशाही से कर दिया गया| 

इसके कुछ समय बाद ही राजा दुलाशाह की मृत्यु हो गई| दरबारियों ने इस अवसर का फायदा उठाकर दुष्प्रचार शुरू कर दिया कि जो बालिका मंगनी के बाद अपने ससुर को खा गई उसके राज्य में पाँव रखते ही अनर्थ हो जायेगा| इसलिये बड़े होने पर मालूशाही को यह बात न बताई जाए| 

वक़्त बीता और दोनों जवान हो चले| राजुला के युवा होने पर सुनपति शौका यह सोचकर व्यथित हुए कि मैंने राजा दुलाशाह को इसे बैराठ में ब्याहने का वचन दिया है, लेकिन वहां से कोई कुशल-खबर नहीं है| 

इसी बीच एक दिन राजुला ने अपनी मां से सहज सवाल किया कि–

“मां दिशाओं में कौन दिशा प्यारी?

पेड़ों में कौन पेड़ बड़ा, गंगाओं में कौन गंगा?

देवों में कौन देव?

राजाओं का कौन राजा और देशों में कौन देश?”

उसकी मां ने बताया –

“दिशाओं में प्यारी पूर्व दिशा, जो पृथ्वी को प्रकाशित करती है.

पेड़ों में पीपल सबसे बड़ा, उसमें देवता वास करते हैं.

गंगाओं में सबसे बड़ी भागीरथी है, जो सबके पाप धोती है.

देवताओं में सबसे बड़े देव महादेव, जो आशुतोष हैं.

राजाओं में राजा है राजा रंगीला मालूशाही और देशों में देश है रंगीला बैराठ”

सुनकर राजुला मुस्कुराई और मां से आग्रह किया कि ‘हे मां! मेरा ब्याह रंगीले बैराठ में ही करना|’ 

एक बार हूण देश का राजा रिक्खीपाल सुनपति शौका के घर आया और उसने राजुला से विवाह की इच्छा प्रकट की| उसने सुनपति को धमकी दी कि अगर राजुला का विवाह मुझसे नहीं किया वह उसके देश को तहस-नहस कर देगा| 

इन्हीं दिनों एक रात मालूशाही ने सपने में राजुला को देखा और उसके रूप पर मोहित हो गया| सपने में ही उसने राजुला को ब्याह कर ले जाने का वचन भी दिया| ठीक यही सपना राजुला ने भी उसी रात देखा| एक ओर बागनाथ के सामने दिया गया वचन और दूसरी ओर हूण राजा रिक्खीपाल की धमकी| इन जटिल हालातों में राजुला ने खुद बैराठ जाने का निश्च्य किया| उसने अपनी मां से बैराठ का रास्ता जानना चाहा| लेकिन मां ने उससे कहा कि बेटी तुझे तो हूण देश जाना है, बैराठ के रास्ते से तुझे क्या मतलब| 

उसी रात में एक हीरे की अंगूठी लेकर राजुला चुपचाप बैराठ की ओर चल पड़ी| पहाड़ों को लांघकर वह मुनस्यारी होते हुए बागेश्वर पहुंची| वहां से उसे कफू पक्षी रास्ता दिखाते हुए बैराठ ले गया| इसी बीच मालूशाही ने भी शौका देश जाकर राजुला को ब्याह कर लाने की बात माँ के सामने रखी| माँ ने उसे मना किया तो उसने भोजन त्यागकर रानियों से भी बातचीत बंद कर दी| उसके जिद पर अड़े रहने के बाद उसे बारह वर्षीय निद्रा जड़ी सुंघाकर बेहोश कर दिया गया| इसके प्रभाव में वह गहरी निद्रा के आगोश में चला गया| इसी दौरान राजुला मालूशाही के राज्य पहुंच गयी| वहां पहुंचकर उसने मालूशाही को जगाने का अथक प्रयास किया| लेकिन वह जड़ी के वशीभूत सोता रहा| निराश होकर राजुला ने उसे अपनी हीरे की अंगूठी पहना दी और एक पत्र उसके सिरहाने रखकर रोते-रोते अपने देश लौट गई|

जड़ी का प्रभाव समाप्त होते ही मालूशाही की निद्रा खुल गयी| होश में आने पर मालू ने अपने हाथ में राजुला की पहनाई अंगूठी देखी और वह पत्र भी पढ़ा जिसमें लिखा था कि ‘हे मालू मैं तो तेरे पास आई थी, लेकिन तू तो निद्रा के वश में था, अगर तूने अपनी मां का दूध पिया है तो मुझे लेने हूण देश आना, क्योंकि मेरे पिता अब मुझे किसी और के संग ब्याह रहे हैं|’ यह पढ़कर राजा मालू को लगा कि उन्हें अब गुरु गोरखनाथ की शरण में जाना चाहिये| मालू गोरखनाथ की शरण में आ गए| 

राजा मालू ने धूनी रमाये बैठे गुरु गोरखनाथ को प्रणाम किया और उनसे राजुला से मिलवाने का निवेदन किया|  कोई उत्तर नहीं मिला तो बाद मालू ने अपना मुकुट और कपड़े नदी में बहा दिये और धूनी की राख शरीर पर मलकर एक सफेद धोती पहनी और गुरु के सामने गया| उसने कहा कि हे गुरु! गोरखनाथ, मुझे राजुला चाहिये, आप बताओ वह कैसे मिलेगी नहीं तो में यहीं पर जहर खाकर अपनी जान दे दूंगा| इससे द्रवित होकर गोरखनाथ ने आँखें खोलीं और फिर मालू को समझाया कि जाकर राजपाट सम्भाले और रानियों के साथ रहे। उन्होंने यह भी कहा कि मालूशाही हम एक डोली सजायेंगे और उसमें एक रूपवती कन्या को बिठाकर उसका नाम राजुला रखेंगे| लेकिन मालू नहीं माना. उसने कहा कि यह तो आप कर दोगे लेकिन मेरी राजुला जैसा रूप-सौन्दर्य कहाँ से लायेंगे| इसके बाद गुरु जी ने उसे दीक्षा देकर बोक्साड़ी विद्या सिखाई. उन्होंने उसे तंत्र-मंत्र भी दिये ताकि हूण और शौका देश का विष उस पर असर न कर सके|

मालू के कान छेदे गये और सिर मूंडा गया| गुरु ने आदेश दिया कि जा मालू पहले अपनी मां से भिक्षा लेकर आ और महल में भिक्षा का खाना भी खाकर आ| यहाँ से मालू ने महल पहुंचकर भिक्षा और खाना मांगा| रानी ने उसे देखकर कहा कि हे जोगी! तू तो मेरा मालू जैसा दिखता है? इस पर मालू ने कहा कि मैं तेरा मालू नहीं एक जोगी हूं, मुझे भोजन करा| रानी ने उसे भोजन परोसा| मालू ने इस भोजन के पांच ग्रास बनाये. पहला ग्रास गाय के नाम रखा, दूसरा बिल्ली को दिया, तीसरा अग्नि के नाम छोड़ा, चौथा ग्रास कुत्ते को डाल दिया और पांचवां खुद खाने लगा| यह देखकर रानी धर्मा समझ गई कि साधू के वेश में मेरा पुत्र मालू ही है, क्योंकि वह भी पंचग्रासी था| रानी ने मालू से कहा कि बेटा तू राज पाट छोड़कर जोगी क्यों बन गया? मालू ने कहा बेसब्र न बन माँ मैं जल्दी ही राजुला को लेकर वापस लौटूंगा| मैं अपनी राजुला को लाने हूणियों के देश जा रहा हूँ| रानी धर्मा के बहुत समझाने पर भी मालू नहीं माना| यह देखकर रानी ने उसके साथ अपने कुछ सैनिक भी भेज दिये| 

मालूशाही जोगी के वेश में हूण देश पहुंचा| उस देश में जहर बुझे पानी के कुंड थे| जहरीला पानी पीकर सभी बेहोश हो गये| इसी बीच विष की अधिष्ठात्री विषला ने मालू को देखा तो उसे उस पर दया आ गई| उसने मालू के शरीर से विष निकाल दिया| मालू राजुला के महल पहुंचा तो वहां बड़ी चहल-पहल देखी| रिक्खी पाल राजुला को ब्याह कर जो लाया था| 

मालू ने अलख लगाईं ‘दे माई भिक्षा!’ तो इठलाती और गहनों से लदी राजुला सोने के थाल में भिक्षा लेकर आई और बोली ‘ले जोगी भिक्षा,’ जोगी उसे एकटक देखता रह गया| अपने सपनों की राजुला को देख वह मोहित हो गया| जोगीरूपी मालू ने कहा ‘अरे रानी तू तो बड़ी भाग्यवशाली है, यहां कहां से आ गई?’ राजुला ने जोगी को हाथ दिखाकर पूछा ‘बता मेरी हाथ की रेखायें क्या कहती हैं,’ तो जोगी ने कहा कि ‘मैं बिना नाम-गोत्र के हाथ नहीं देखता’ तो राजुला ने बताया कि ‘मैं सुनपति शौका की लड़की राजुला हूं| मेरा भाग क्या है’ तो जोगी ने प्यार से उसका हाथ अपने हाथ में लिया और कहा ‘तेरा भाग कैसा फूटा, तेरे भाग में तो रंगीले बैराठ का मालूशाही था’| यह सुनकर राजुला ने रोते हुये कहा कि ‘हे जोगी, मेरे मां-बाप ने तो मुझे रिक्खी पाल से ब्याह कर गोठ की बकरी की तरह हूण देश भेज दिया’. इसके बाद मालूशाही ने अपना जोगी का चोला उतार फेंककर कहा ‘मैंने तेरे लिये ही जोगी का वेश धारण किया है, मैं तुझे यहां से छुड़ा कर ले जाऊंगा|’

इसके बाद राजुला ने रिक्खीपाल को बुलाकर बताया कि ये जोगी बड़ा गुणवान और सौ विद्याओं का ज्ञाता है, यह हमारे बहुत काम का हो सकता है| रिक्खीपाल मान तो जाता है मगर जोगी के मुख पर राजा सा प्रताप देखकर आशंकित भी हो जाता है| वह मालू को अपने महल में रख तो लेता है मगर हरदम उसकी जासूसी करवाता है| यहाँ राजुला के चोरी-छिपे जोगी से मिलने की भनक रिक्खीपाल को लग जाती है| बैराठ के राजा मालूशाही को पहचानकर वह उसे मारने की योजना बनता है| रिक्खिपाल ने महल में खीर बनवाई और उसमें जहर मिला दिया| मालू को खाने पर बुलाकर उसे जहर बुझी खीर खाने को दे दी गयी| खीर खाते ही मालू मर गया, यह देखकर राजुला भी बेहोश हो गई| उसी रात मालू की मां को मालू ने सपने में आकर बताया कि मैं हूण देश में मर गया हूं| मालू की माँ मालू के मामा मृत्यु सिंह (जो कि गढ़वाल की किसी गढ़ी के राजा थे) को सिदुवा-विदुवा रमौल और बाबा गोरखनाथ के साथ हूण देश भेजा, ताकि मालू को वापस लाया जा सके.

मालू के मामा मृत्यु सिंह सिदुवा-विदुवा रमोल के साथ हूण देश पहुंचे| यहाँ पहुंचकर बोक्साड़ी विद्या के प्रयोग से उन्होंने मालू को पुनर्जीवित किया| इसके बाद मालू ने महल में जाकर राजुला को भी जगा दिया| 

इसके बाद इनके सैनिकों ने हूण सैनिकों के साथ-साथ राजा रिक्खीपाल को भी मार गिराया| इसके बाद मालू ने विजय सन्देश बैराठ भिजवाया कि नगर को राजुला रानी के स्वागत के लिए सजाया जाये| मालूशाही बैराठ पहुंचा जहां पर उसने धूमधाम के साथ राजुला से शादी रचाई| शादी के बाद राजुला ने कहा कि ‘मैंने पहले ही कहा था कि मैं नौरंगी हूं और जो दस रंग का होगा उसी से में शादी करुंगी| मालू तुम मेरे जन्म-जन्म के साथी हो|’ दोनों हंसी-खुशी साथ रहकर प्रजा की सेवा करने लगे|

राजुला-मालूशाही की यह दास्तान उत्तराखण्ड के इतिहास की सर्वाधिक लोकप्रिय अमर प्रेम कहानी बन गयी – एक राजा का सामान्य शौका कन्या के लिये राज-पाट छोड़, जोगी का भेष में दर-ब-दर भटककर उसे ब्याहकर ले आने की कहानी| 

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