Slump Cone Test: कंक्रीट की कंसिस्टेंसी को मापने के लिए अनेकों टेस्ट में से सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला तरीका स्लंप टेस्ट है जिसे लेबोरेटरी के साथ साइट पर भी आसानी से किया जा सकता है| स्लंप कोन टेस्ट को करने के लिए हमें बहुत महंगे उपकरणों की आवश्यकता नहीं होती| आइए जानते हैं स्लंप कोन टेस्ट कैसे करते हैं और एक कंक्रीट में कितना स्लंप होना चाहिए|
स्लंप कोन टेस्ट क्या होता है? (What is Slump Cone Test of Concrete)
कंक्रीट की वर्काबिलिटी मापने के अलग-अलग टेस्ट में से एक टेस्ट है स्लंप कोन टेस्ट(Slump Cone Test)| कंक्रीट में कितना स्लंप होना चाहिए, यह कंक्रीट प्लेस होने के स्थान पर निर्भर करता है| स्लंप टेस्ट बहुत गीली कंक्रीट और अत्यधिक सुखी कंक्रीट के लिए नहीं है| यह टेस्ट वर्काबिलिटी में योगदान देने वाले सभी कारणों का पता नहीं लगाता| लेकिन वर्काबिलिटी के लिए स्लंप कोन टेस्ट सबसे अधिक उपयोग किया जाने वाला टेस्ट है| स्लंप कोन टेस्ट आसानी से कंक्रीट कंसिस्टेंसी के नियंत्रण परिक्षण के रूप में उपयोग किया जाता है और हर बैच की कंक्रीट की समानता और एकरूपता का संकेत देता है|
कंक्रीट स्लंप टेस्ट के लिए उपकरण (Concrete Slump Test Apparatus)
कंक्रीट का स्लंप टेस्ट करने के लिए हमें स्लंप टेस्ट के उपकरण चाहिए जिसमें एक कोन के फ्रस्टम के आकार का मैटेलिक मोल्ड और एक टैम्पिंग रोड की आवश्यकता होती है|
मैटेलिक मोल्ड का ऊपरी व्यास (diameter) 10 सेंटीमीटर, निचला व्यास 20 सेंटीमीटर और ऊंचाई 30 सेंटीमीटर होती है| और जिस मैटेलिक शीट से यह उपकरण बना होता है उसकी मोटाई 1.6 मिलीमीटर से कम नहीं होनी चाहिए| स्लंप टेस्ट में उपयोग होने वाला टैम्पिंग रोड स्टील का बना होता है और इसका व्यास 16 मिलीमीटर और लम्बाई 0.6 मीटर होती है| इसका एक सिरा बुलेट के आकार का होता है|
स्लंप कोन टेस्ट कैसे करते हैं? (How Slump Cone Test is Performed)
- कंक्रीट का स्लंप टेस्ट करने के लिए सबसे पहले मैटेलिक उपकरण के अंदर की सतह को अच्छी तरह से साफ़ करना चाहिए| इसमें किसी भी प्रकार का मॉइस्चर या पुरानी सेट कंक्रीट नहीं लगी होनी चाहिए|
- मैटेलिक मोल्ड को एक समतल, ठोस और पानी न सोखने वाली सतह पर रखना होता है|
- उसके बाद मोल्ड को चार बराबर लेयर पर भरें| प्रत्येक लेयर भरने के बाद टैम्पिंग रोड से कंक्रीट के हर तरफ 25 बार टैम्प करें|
- चौथी लेयर भरने और टैम्पिंग करने के बाद ऊपरी सतह को करणी से समतल करें|
- इसके तुरंत बाद धीरे से और सावधानी से मैटेलिक मोल्ड को लंबवत ऊपर की ओर उठाएं|
- मोल्ड उठाने से कंक्रीट बैठने लगेगी|
- मोल्ड की लम्बाई और झुकी हुई कंक्रीट की लम्बाई के अंतर को हम कंक्रीट का स्लंप कहते हैं|
स्लंप के प्रकार (Types of Slump of Concrete)
True Slump: अगर स्लंप कोन टेस्ट में कंक्रीट बराबर बैठता है, तो उसे हम True slump कहते हैं| True Slump एक सही कंक्रीट दर्शाता है| इसकी स्लंप वैल्यू जरुरत अनुसार रखी जाती है| जिस स्थान पर सरिया नहीं होता या बहुत कम होता है, जैसे कंक्रीट रोड में, वहाँ 25-75mm तक कम स्लंप ही रखा जाता है| नार्मल सरिया वाली जगह पर मिडियम स्लंप (जैसे 50-100mm) की कंक्रीट प्लेस की जाती है| जिस स्थान पर बहुत घना सरिया बिछा हो और जहाँ वाइब्रेशन करना कठिन हो उस जगह पर हाई स्लंप (100-150mm) की कंक्रीट प्लेस की जाती है| 160-180mm स्लंप की कंक्रीट भी निर्माण कार्यों में इस्तेमाल की जाती है| इससे ऊपर स्लंप की वैल्यू के लिए कंक्रीट के स्लंप कोन टेस्ट की जगह फ्लो टेस्ट किया जाता है, जिसमें फैली हुई कंक्रीट का diameter मापा जाता है|
Shear Slump: कंक्रीट का स्लंप टेस्ट करते समय यदि कंक्रीट कोन का आधा हिस्सा नीचे की तरफ स्लाइड करे तो इसे शियर स्लंप कहते हैं| ऐसे केस में स्लंप वैल्यू- कंक्रीट के कोन की लम्बाई और स्लाइड किए कंक्रीट की औसत लम्बाई का अंतर होती है| शियर स्लंप कंक्रीट में सेग्रीगेशन की विशेषता को दर्शाता है और साथ ही इस बात का संकेत देता है कि कंक्रीट मिक्स नॉन-कोहेसिव (non-cohesive) है|
Collapse: यदि कंक्रीट स्लंप कोन टेस्ट के दौरान पूरी तरह से ढह जाए तो इसका मतलब यह नहीं कि कंक्रीट की गुणवत्ता सही नहीं है| यह वैरी हाई स्लंप दर्शाता है और इस तरह की कंक्रीट के लिए स्लंप कोन टेस्ट सही जानकारी नहीं देता इसीलिए ऐसी वैरी हाई स्लंप कंक्रीट के लिए फ्लो टेस्ट किया जाता है|
कंक्रीट के स्लंप का महत्व (Significance of Slump of Concrete)
स्लंप कोन टेस्ट प्लास्टिक कंक्रीट के लिए अच्छा परिणाम देता है, जिससे उसकी वर्काबिलिटी का अंदाजा लग सके| लेकिन सूखे मिक्स (ड्राई-मिक्स) कंक्रीट के लिए इसके परिणाम इतने कारगर नहीं है और दो ड्राई मिक्स में अंतर पता करना इतना आसान नहीं होता| रिच मिक्स के लिए (जिसमें सीमेंट पेस्ट की पर्याप्त मात्रा होती है) स्लंप टेस्ट बहुत उपयोगी है और थोड़ी मिक्स में फेरबदल स्लंप को प्रभावित करती है|
ड्राई कंक्रीट मिक्स के लिए भारतीय मानक कोड IS 456 स्लंप कोन टेस्ट के बदले वर्काबिलिटी मापने के लिए कोम्पक्टिंग फैक्टर टेस्ट सूझाता है|
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