कुमाउँनी फेस्टिवल घुघुती की कहानी | Ghughuti Festival 2023 | Happy Ghughuti 2023

Ghughuti Festival 2023: भारत वर्ष में बहुत से त्यौहार मनाए जाते हैं| उनमें से हिन्दू धर्म के लोगों के लिए साल का पहला बड़ा त्यौहार होता है मकर संक्रांति का त्यौहार| उत्तर भारत के राज्य उत्तराखंड में इसे उत्तरायणी के नाम से जाना जाता है| वहीँ उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में पुरानी मान्यताओं के कारण इसे घुघुती त्यौहार (Ghughuti Festival 2023) भी कहा जाता है| आइये जानते हैं इस साल घुघुती त्यौहार कब है और क्यों मनाया जाता है?

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घुघुती 2023 त्यौहार कब है?

इस साल मकर संक्रांति, उत्तरायणी, पोंगल, बिहू का त्यौहार 15 जनवरी 2023 को मनाया जाएगा| उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में उत्तरायणी त्यौहार को घुघुती त्यौहार भी कहा जाने लगा है| इसका कारण है कुमाऊं समेत दुनिया भर में फैले कुमाऊंनी लोगों द्वारा इस दिन बनाए जाने वाले पकवान घुघुती की लोकप्रियता|    


उत्तराखंड के घुघुती त्यौहार की कहानी (Ghughuti Festival 2023)

मकर संक्रांति पर उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं क्षेत्र में मनाये जाने वाले घुघुती त्यौहार की एक अलग ही पहचान है| इस दिन घुघुती नाम का एक पकवान बनाया जाता है, जिसे बच्चे कौवों को खिलाते हैं| इसके पीछे एक कथा प्रचलित है|      

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बहुत समय पहले कुमाऊँ में चंद्रवंशी राजा राज करते थे| एक चंद्रवंशी राजा कल्याणचंद की कोई संतान ना होने के कारण उनका कोई उत्तराधिकारी नहीं था| राजा का मंत्री यही सोचता था कि राजा के बाद राज्य उसे ही मिलेगा| एक बार संतान की प्रार्थना लिए राजा कल्याणचंद बागेश्वर के बागनाथ मंदिर गए| बागनाथ की कृपा से राजा की एक संतान हुई जिसका नाम उन्होने निर्भयचंद रखा| बालक को उसकी माँ प्यार से घुघुती कहा करती थी| घुघुति बहुत शरारती बालक था| घुघुति की माता ने उसे एक हीरे की माला पहना रखी थी, जिससे घुघुती बहुत खुश रहता था| जब भी घुघुती शरारत करता तो उसकी माँ कहती थी वह उसकी माला कौओं को दे देंगी| वह कहती थी "काले कौवा काले घुघुती माला खाले"| 

घुघुती की हीरे की माला की चमक से कौवे भी बहुत खुश हुआ करते थे, और उन्हें घुघुती की माँ से कुछ खाने को भी मिल जाया करता था| इसलिए वह घुघुति के आस पास ही रहा करते थे| जिससे घुघुति और कौवों में गहरी मित्रता हो गई| जब घुघुति थोड़ा बड़ा हुआ और उसका राजा की गद्दी संभालने का समय आया तो राजा के मंत्री ने राजगद्दी के लिए घुघुती को मारने की सोची और उसने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर षड्यंत्र रचा| 

एक बार जब घुघुती खेल रहा था तो मंत्री उसे जंगल की तरफ ले गया| घुघुती को ले जाते समय कौवों ने देख लिया और वह जोर जोर से आवाज करने लगे| घुघुती भी रोने लगा| एक कौवा घुघुती की माला लेकर चला गया| बाकी कौवे राजा के साथियों पर चोंच से हमला करने लगे| यह देखकर वे सभी भाग गए| घुघुती जंगल में अकेला रह गया और पेड़ के नीचे बैठ गया| सभी कौवे भी उसी पेड़ पर बैठ गए| जो कौवा घुघुती का हार लेकर गया था वह राजा के महल के पास जाकर बैठ गया और जोर जोर से कावं-कावं करने लगा| 

घुघुती की माँ ने कौवे के पास माला देख ली और उसने राजा को यह बात बताई| राजा और उसके घुड़सवार कौवे के पीछे लग गए| कौवा उन्हें जंगल में उसी पेड़ तक ले गया जहाँ घुघुती बैठा था| इसके बाद घुघुती अपने पिता के साथ घर वापस आ पाया| घर आकर घुघुती की माँ बहुत प्रसन्न हुई और कहने लगी आज घुघुती की माला की वजह से ही उसकी जान बच पायी है| राजा ने मंत्री और उसके साथियों को मृत्यु दंड दे दिया|  

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घुघुती की सलामती की खुशी पर माँ ने घर पर बहुत पकवान बनाए और घुघुती से कौवों को पकवान खिलाने को कहा| धीरे-धीरे यह बात समस्त कुमाऊं में फैल गई और बच्चों के बीच एक लोकप्रिय त्यौहार बन गया| तब से कुमाऊं क्षेत्र में मीठे आटे से एक पकवान बनाया जाता है, जिसे घुघुती कहा जाता है| बच्चे इसकी माला बनाकर और अपने गले में डालकर कौवों को बुलाते हैं| और कहते हैं "काले कौवा काले घुघुती माला खाले"|        

      

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