भारतीय रेलवे दिवस पर जानिए भारत की पहली ट्रेन की कहानी | Indian Railway Day 2023

भारतीय रेलवे दिवस 2023: प्राचीन काल में इंसान पैदल सफर किया करते थे| जैसे-जैसे विज्ञान में तरक्की हुई, इंसान ने सफर को आसान बनाना शुरू कर दिया| घोड़ा और बैलगाड़ी पर सफर से आगे बढ़ते हुए इंसान ने असली तरक्की तब की जब वैज्ञानिकों ने इंजिन का आविष्कार किया| इंजन बनाने के बाद मोटर गाड़ियां, ट्रेन और अन्य यातायात साधनों का जन्म हुआ| भारत में रेल यातायात का इतिहास लगभग 170 साल पुराना है, जब 16 अप्रैल 1953 को भारत की पहली यातायात रेलगाड़ी चली थी| इस दिन को रेलवे दिवस (Indian Railway Day 2023) के रूप में भी जाना जाता है| 
railway day

आज भारत में तेजी से सफर करने के लिए हवाई जहाज के साथ सेमी हाई स्पीड ट्रेनों जैसे यातायात के साधन मौजूद हैं| बुलेट ट्रेन का भी निर्माण शुरू हो चूका है| इन साधनों की मदद से हम हजारों किलोमीटर का सफर कुछ ही घंटों में तय कर सकते हैं| भारत में भारतीय रेलवे यातायात की जीवन रेखा की तरह है क्यूंकि प्रतिदिन करोड़ो यात्री रेलवे में सफर करते हैं| भारत का रेल नेटवर्क बहुत बड़ा है| दुनिया के नजरिये से देखा जाए तो अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारतीय रेलवे का नेटवर्क चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है| चौथे सबसे बड़े रेल नेटवर्क, भारतीय रेलवे नेटवर्क की शुरुआत उस समय हुई थी जब भारत पर अंग्रेजों की हुकूमत थी| उस समय के भारतीय गवर्नर लॉर्ड डलहौज़ी को भारतीय रेलवे का जनक माना जाता है| वे साल 1848 से 1856 तक भारत के गवर्नर रहे थे| 
railway divas
साल 1832 में मद्रास के अंदर पहली बार भारत में रेल सेवा शुरू करने का प्रस्ताव रखा गया था| इस प्रस्ताव को स्वीकार करने के पांच वर्षों बाद साल 1837 में भारत के अंदर पहली ट्रेन चलाई गई थी| भारत की पहली ट्रेन रेडहिल्स रेलरोड, लाल पहाड़ी से चेन्नई के चिंताद्रीपेट तक चलाई गई| इस ट्रेन में स्टीम इंजिन का प्रयोग किया गया था| इस प्रथम रेल का निर्माण सर आर्थर कॉटन ने किया था| इस ट्रेन का उपयोग मद्रास में बन रहे रोड के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले ग्रेनाइट पत्थरों को लाने और ले जाने के लिए किया गया| इसका नाम रेड हिल रेलवे रखा गया था| 
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साल 1845 में सर आर्थर कॉटन ने ही गोदावरी डैम कॉन्स्ट्रक्शन रेलवे का निर्माण किया था| इस ट्रेन का इस्तेमाल गोदावरी नदी पर बांध बनाने में इस्तेमाल होने वाले पत्थरों को लाने और ले जाने के लिए किया गया था| 08 मई 1845 को मद्रास रेलवे का गठन हुआ था, उसी साल ईस्ट इंडिया रेलवे का भी गठन हुआ| कुछ साल इसी तरह भारत का रेलवे सिस्टम काम करता रहा| 1 अगस्त 1949 को संसद के एक अधिनियम के तहत ग्रेट इंडियन पेनिन्सुलर रेलवे (जीआइपीआर) का गठन हुआ| इस अधिनियम के अनुसार भारतीय रेलवे को निर्माण करने के लिए मुफ्त में जगह देने की गैरन्टी दी गई थी| इसके बदले में भारतीय रेलवे को अपने मुनाफ़े का 5% हिस्सा रेल बनाने वाली अंग्रेजी कंपनियों को देना था| 17 अगस्त 1849 को ये नियम लागू कर दिया गया| 

वर्ष 1851 में रुड़की के अंदर सलोनी ऐक्विडक्ट रेलवे का निर्माण किया गया| इस रेल में इस्तेमाल होने वाले इंजन का नाम एक ब्रिटिश अफसर थॉमसन के ऊपर रखा गया था| इस ट्रेन को उपयोग सलोनी नदी पर बन रहे जल मार्ग का निर्माण सामग्री पहुंचाने के लिए किया गया| 
railway history in hindi
1850 में कोलकाता की रेल कंपनी ग्रेट इंडियन पेनिनसुलर रेलवे ने भारत में पहली पैसेंजर ट्रेन चलाने के लिए पटरियां बिछाने का काम शुरू कर दिया| तीन साल कड़ी मेहनत करने के बाद कोलकाता की इस रेल कंपनी ने अपना काम खत्म कर दिया| 16 अप्रैल 1853 में भारतीय रेल के इतिहास का सबसे बड़ा दिन था| इसी दिन भारत की पहली पैसेंजर ट्रेन चलाई गई| भारतीय इतिहास की ये पहली ट्रेन मुंबई से थाने तक चलायी गयी थी| इस ऐतिहासिक ट्रेन ने 16 अप्रैल 1853 को दोपहर 3:30 बजे महाराष्ट्र के बोरी बन्दर टर्मिनल से थाने तक का सफर तय किया था| ये सफर 34 किलोमीटर लंबा था| भारत की इस पहली पैसेंजर ट्रेन में 20 डिब्बे थे| इस ट्रेन को खींचने के लिए तीन स्टीम इंजनों का इस्तेमाल किया गया था| इन तीनों का नाम सुल्तान, सिंधु और साहिब रखा गया था| पहली बार चली इस ट्रेन में लगभग 400 लोगों ने सफर किया था| शाम 4:45 पर इस ट्रेन का सफर समाप्त हुआ| ये सफर बेशक छोटा था, लेकिन यहीं से भारतीय रेलवे की नींव रखी गई थी| 
history of first train in india
महाराष्ट्र का बोरी बन्दर टर्मिनल जहाँ से ट्रेन चलायी गयी थी, आज उसको हम छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनल के नाम से जानते हैं| ग्रेट इंडियन पेनिनसुलर रेलवे कंपनी द्वारा इस पैसेंजर ट्रेन के लिए बिछाई गईं पटरियों की चौड़ाई पांच फुट छह इंच रखी गई थी| उसके बाद से भारत में पटरियों की चौड़ाई का यही स्टैंडर्ड बन गया| अभी तक भारत में इसी चौड़ाई की पटरियां बिछाई जाती है|   

साल 1854 बोरीबंदर से थाने तक जाने वाले इस रेलवे ट्रैक को कल्याण तक बढ़ा दिया गया| इसी दौरान भारत के अंदर पहले रेलवे ब्रिज का निर्माण भी किया गया| भारत इतिहास के इस पहले रेलवे ब्रिज का निर्माण थाने की एक छोटी नदी के ऊपर किया गया था| इस तरह भारत में रेल चलने की शुरुआत हो गई| उस समय अलग-अलग कंपनियों द्वारा भारत के अलग-अलग हिस्सों में पटरियां बिछाने का काम शुरू कर दिया गया था| पूर्वोत्तर भारत में पहली पैसेंजर 15 अगस्त 1854 को चलाई गई थी| ये ट्रेन कोलकाता के हावड़ा से हुगली तक चलाई गई| हावड़ा से हुगली तक का ये सफर 39 किलोमीटर लंबा था| साल 1855 में ईस्ट इंडिया रेलवे कंपनी भारत की पहली टॉय ट्रेन फेरी क्वीन को चलाया| इस ट्रेन में विश्व का सबसे पुराना स्टीम इंजन लगाया गया था| 

ब्रिटेन की एक ट्रेन निर्माण कंपनी के इस ट्रेन को बनाया था। साल 1881 में इस ट्रेन को आधिकारिक तौर पर चलाया गया| इस ट्रेन को हैरिटेज ट्रेन के रूप में आज भी चलाया जाता है। ये ट्रेन दो फुट चौड़े रेलवे ट्रैक पर चलती है| इस ट्रेन की रफ्तार बहुत कम होती है| इस ट्रेन को देखने और इसमें सफर करने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं| 

दक्षिण भारत की बात करें तो यहाँ पर पहली पैसेंजर ट्रेन वर्ष 1856 में चलाई गई थी| इस ट्रेन ने रोयापुरम से आर कोर्ट तक का सफर तय किया था| इस का निर्माण और संचालन मद्रास रेलवे ने किया|  
lights in train in railway
शुरुआत में ट्रेनों के अंदर ना कोई टॉयलेट होते थे ना ही अंधेरा दूर करने के लिए के लिए कोई बल्ब| लगभग 50 साल तक ये ट्रेनें बिना टॉयलेट और बल्ब के चलती रही| आप सोच सकते हैं कि बिना लाइट के रात में ट्रेन का सफर कितना भयानक होता होगा| अंधेरे में ट्रेन के अंदर आपराधिक घटनाएं भी बहुत ज्यादा होने लगी थी| इन अपराधी घटनाओं से बचने के लिए ट्रेनों में इलेक्ट्रिक बल्ब लगाए गए| साल 1897 में ट्रेन बनाने वाली कई कंपनियों ने ट्रेन की आधुनिक डिब्बे पेश किए जिनमें इलेक्ट्रिकल बल्ब चलाने की सुविधा थी| यहीं से ट्रेनों के डिब्बों में बल्ब लगने की शुरुआत हुई| साल 1902 में जोधपुर रेलवे पहली कंपनी बनी, जिसने ट्रेन के अंदर इलेक्ट्रिकल लाइट्स को स्टैंडर्ड के रूप में प्रस्तुत किया| इसके बाद से लगभग सभी ट्रेनों में इलेक्ट्रिकल लाइट लगाई जाने लगीं|
toilets in railway
लंबे समय तक ट्रेनों में शौचालय की सुविधा भी नहीं हुआ करती थी| लोग बिना शौचालय का प्रयोग किये लंबा सफर तय किया करते थे| आप सोच सकते हैं कि उस समय लोगों को सफर में कितनी परेशानी होती होगी| आखिरकार साल 1891 में ट्रेन के अंदर शौचालय की सुविधा की गई, लेकिन ये सिर्फ प्रथम श्रेणी डिब्बों के लिए थी| प्रथम श्रेणी के अलावा बाकी के आम डिब्बों में ये सुविधा साल 1909 में शुरू की गई| ट्रेन के सभी डिब्बों में शौचालय की सुविधा दिए जाने का ये किस्सा बड़ा मजेदार है| यह बात पश्चिम बंगाल की है| अकल चंद्रसेन नाम का एक व्यक्ति को ट्रेन सफर के दौरान टॉयलेट जाने की जरूरत हुई| एक जगह ट्रेन रुकने पर ये शख्स झाड़ियों में लघुशंका करने के लिए चले गए| जब इन साहब ने वापस आकर देखा तो ट्रेन जा चुकी थी| अकल चन्द्र इस बात से बेहद नाराज हो गए और उन्होंने रेलवे को एक लंबा चौड़ा शिकायत पत्र लिख डाला| अक्ल चंद्र की ये शिकायत काम कर गई और साल 1909 से ट्रेन के हर डिब्बे में शौचालय की सुविधा दी जाने लगी| आज भारत में हर रेलगाड़ी में बायो-टॉयलेट की सुविधा होती है| 
साल 1925 में पहली बार ट्रेन बजट पेश किया गया| इसी साल ट्रेनों के इलेक्ट्रिफिकेशन का काम शुरू किया गया| 3 फरवरी 1925 को भारत की पहली इलेक्ट्रिकल पैसेंजर ट्रेन चलाई गई| ये पहली इलेक्ट्रिकल ट्रेन विक्टोरिया टर्मिनस से कुर्ला तक चलायी गयी थी| इलेक्ट्रिकल ट्रेन के सफलतापूर्वक चल जाने के बाद पूरे भारत में तेजी से ट्रेनों का विद्युतीकरण और विस्तार किया जाने लगा| वर्तमान में भारत ने अपने लिए ब्रॉड गेज के सभी रूट पर इलेक्ट्रिफिकेशन करने का लक्ष्य 2023 रखा है| 
14 अगस्त 1947 में रेलवे भारत और पाकिस्तान के बीच दो हिस्से में बंट गए| देश आजाद होने के 4 साल बाद 1951 में रेलवे का राष्ट्रीयकरण किया गया| साल 1952 में सभी ट्रेनों के अंदर लाइट और सोने के लिए बर्थ बनाना अनिवार्य कर दिया गया| भारत की पहली फुली एयर कंडीशन ट्रेन साल 1956 में दिल्ली और हावड़ा के बीच चलाई गई| साल 1988 में शताब्दी एक्सप्रेस को पेश किया गया था| ये ट्रेन 150 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलती थी| ये अपने समय भारत की सबसे तेज चलने वाली ट्रेन थी| 
vande bharat
आज भारत की सबसे तेज चलने वाली ट्रेन का नाम वंदे भारत एक्सप्रेस है| इस ट्रेन को वर्ष 2019 में पेश किया गया था| यह ट्रेन 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलती है| 1837 में चलने वाली पहली ट्रेन से लेकर 2023 की वंदे भारत ट्रेन तक आने का ये सफर बेहद लंबा और कठिनाइयों से भरा रहा| भारतीय रेलवे ने जो भी उपलब्धियां प्राप्त की है, उस पर प्रत्येक भारतीय नागरिक को गर्व होना चाहिए| 

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