बोनालु फेस्टिवल 2023 | बोनालु त्यौहार कब मनाया जाता है

बोनालु फेस्टिवल 2023: भारत आस्थाओं, परम्पराओं, धार्मिक मान्यताओं और भिन्न भिन्न संस्कृतियों का देश है| जहाँ एक तरफ भारत में जाति, धर्म और संस्कृति की भिन्नता दिखाई पड़ती है, वहीँ यहाँ के त्योहारों में भी संस्कृति और परम्परा की छाप स्पष्ट दिखाई देती है| यहाँ के त्योहारों में लोगों की धार्मिक आस्था की पकड़ बहुत मजबूत है| यही वजह है कि यहाँ का हर त्यौहार किसी न किसी देवी देवता को समर्पित है| दिवाली में जहाँ लक्ष्मी माता और गणेश जी की पूजा होती है, तो दशहरा में राम की, नवरात्री में माता दुर्गा के अलग-अलग रूपों की, तो जन्माष्टमी में श्रीकृष्ण की| मेलों और आयोजनों में भी धर्म की परछाई दिखाई पड़ती है| ऐसा ही एक त्यौहार है बोनालु त्यौहार| आइये जानते हैं बोनालु त्यौहार कब है और क्यों मनाया जाता है|   
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बोनालु फेस्टिवल कब मनाया जाता है (Bonalu Festival 2023)

बोनालु त्यौहार हिन्दू कैलेंडर के हिसाब से आषाढ़ मास में मनाया जाता है, जो ग्रेगोरियन कैलेंडर के जुलाई-अगस्त में पड़ता है| यह त्यौहार सुख-समृद्धि की कामना और बीमारियों से बचने के लिए मनाया जाता है| बोनालु त्यौहार दक्षिण भारत के राज्य तेलंगाना के शहर हैदराबाद, सिकंदराबाद और आस पास के जुड़े अन्य क्षेत्रों में मनाया जाता है| 
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बोनालु या महाकाली बोनालु एक हिन्दू त्यौहार है जिसमें येल्लम्मा या देवी महाकाली की पूजा की जाती है| यह त्यौहार देवी की कृपा के बदले दिए जाने वाले धन्यवाद के तौर पर मनाया जाता है|

बोनम शब्द जिससे बोनालु शब्द बना है, संस्कृत शब्द भोजनम शब्द का अपभ्रंश है जिसका अर्थ तेलगु भाषा में माँ को चढ़ाया जाने वाला प्रशाद है| आमतौर पर बोनम महिलाओं द्वारा मिटटी के बर्तन में चावल, दूध और गुड़ को मिलाकर बनाया जाता है| इस बर्तन के ऊपर नीम की पत्तियां, हल्दी, सिंदूर और एक जलता दिया रखा जाता है| महिलाएं इस बर्तन को अपने सर पर रखकर मंदिरों में माँ काली को यह बोनम चढाती हैं| बोनम के साथ माँ काली को श्रृंगार की अन्य वस्तुएं जैसे सिंदूर, चूड़ियां और साड़ी भी अर्पित की जाती है| माँ काली के क्षेत्रीय स्वरूपों जैसे मैसम्मा, पोचम्मा, येल्लम्मा, पेदाम्मा, डोककालम्मा, अंकालम्मा और नुकलम्मा आदि स्वरूपों की पूजा होती है| 
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बोनालु फेस्टिवल का इतिहास (Bonalu Festival History) 

यह त्यौहार वर्षा ऋतू में मनाया जाता है| इस दौरान मानव शरीर में कई सारी बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं| इस त्यौहार के शुरू होने के पीछे एक दर्दनाक घटना जुडी है| माना जाता है कि 1813 में भारत के दो बड़े राज्य हैदराबाद और सिकंदराबाद में हैजा का बड़ा प्रकोप फैला था, जिससे कई मौते हुई| कहा जाता है, कि हालात से बचाव के लिए शहर की सेना ने मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में महाकाली के मंदिर में पूजा की थी| साथ ही यह मन्नत मांगी थी कि अगर यह बीमारी की समस्या पूरी तरह टल जाती है तो शहर में महाकाली की मूर्ति स्थापना करेंगे| माना जाता है पूजा के बाद धीरे-धीरे शहर से हैजा का प्रकोप ख़त्म होने लगा, जिसके बाद सेना के जवानों ने यहाँ माता महाकाली की मूर्ति स्थापित करी| तब से लेकर अब तक निरंतर हर साल आषाढ़ महीने में यह उत्सव मनाया जाता है| यह पूरा त्यौहार महाकाली को समर्पित है| 
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बोनालु उत्सव राज्य के अलग-अलग जगह पर विशेष आयोजनों के साथ मनाया जाता है| इस त्यौहार से यह भी कहानी जुड़ी है कि अगस्त माह के दौरान महाकाली अपने मायके चली जाती है| इस त्यौहार के दौरान महाकाली से अच्छी सेहत और घर की सुख शांति की कामना की जाती है| महाकाली की विशेष पूजा से बड़ी शोभा यात्रा का भी आयोजन किया जाता है जिसमें सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं| शोभा यात्रा के दौरान महिलाएं अपने सर पर चावल, दूध और गुड़ से बने प्रशाद के साथ मंदिर की ओर आगे बढ़ती हैं| इस उत्सव में महिलाएं और पुरुष पारम्परिक पोषाक ही पहनते हैं| 

इस उत्सव के दौरान महाकाली को प्रसन्न करने के लिए पशुओं की बलि भी दी जाती है, जिसके बाद महाकाली को चढ़ाने के लिए भोग का निर्माण किया जाता है| बड़े स्तर पर बकरी या मीट बनाया जाता है, जिसे देवी को चढ़ाने के बाद परिवार मिलकर खाते हैं| देवी को ताड़ के पेड़ से बनी मदिरा भी चढाई जाती है| इससे पहले इस उत्सव में भैंस और भेद की भी बलि दी जाती थी| लेकिन सरकार द्वारा जानवरों को बचाने के लिए बनाए गए नियम और कानूनों के बाद अब कद्दू, नारियल, लौकी और नीम्बू की बलि दी जाती है| 

बोनालु उत्सव के दौरान "रंगन" नाम की ख़ास धार्मिक प्रक्रिया भी जगह लेती है,जिसके अंतर्गत एक महिला मिटटी के बने घड़े पर खड़ी होती है| माना जाता है कि उस महिला के अंदर साक्षात महाकाली आ जाती है, जो लोगों को उनके भविष्य के बारे में बताती है| माँ काली के रूप में महिला लोगों के साथ एक साल क्या-क्या घटने वाला है उसके बारे में बताती है| यह धार्मिक प्रक्रिया शोभा यात्रा से पहले की जाती है| 

उत्सव की यात्रा हैदराबाद के गोलकोण्डा में श्री जगदम्बिका मंदिर से शुरू होकर सिकंदराबाद के उज्जैनी महाकाली मंदिर और उसके बाद लाल दरवाजा माता मंदिर में जाकर संपन्न होती है| 
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